वो अघोरी
मैं उसे देखकर नजरअंदाज कर दिया करता था।तब मुझे इनके ढकोसले पन और कर्महीनता पर बहुत ही क्रोध आता था।गन्दगी सर से पांव तक लपेटे हुए,अर्द्धनग्न अवस्था में कभी गांजे तो कभी कोई और नशा करते हुए ही इन्हें पाता था।नशे के चक्कर में दो चार लोग हमेशा उसे घेरे रहते थे।कुछ कॉलेज के विद्यार्थी और कुछ मेरे जानने वालों की भी भीड़ उसके पास बैठकी लगाया करते थे।
मुझे इस तरह के ढकोसले बाजो से कोई लगाव जैसा कुछ नहीं था मुझे लगता था जिंदगी की परेशानियों से भागकर ये भगवत भक्ति का नाटक करते हैं इसलिए मैं नजरअंदाज कर दिया करता था।लोग उसपे बड़ी श्रद्धा रखते थे उनका नाम तो किसी को नहीं पता था लोग उन्हें अघोरी बाबा कहा करते थे।
कुछ लोग अपनी परेशानी से तंग आकर उनके पास जाते थे।कुछ तो कहते उनकी समस्याओं का समाधान बाबा ने कर दिया कुछ लोग उन्हें ढोंगी कहा करते।स्त्रियों से उनको बहुत आपत्ति थी कभी भी स्त्रियों को अपने मंदिर के द्वार से अंदर नहीं आने देते थे।कभी कोई स्त्री आती तो द्वार से ही जो भी कामना करना होता करती और जो कुछ भी चढ़ावे में देना होता वहीं रख कर चली जाती।पता नहीं कभी किसी की मनोकामना पूर्ण होती भी थी या नहीं।वह कभी भी किसी बड़े बाबा या श्रद्धा का प्रतीक नहीं बना।मनमौजी था वो कभी कभी वह महीनों के लिये गायब हो जाता तो कभी भूख हड़ताल कर देता।
एक बार तो मोह्हले वालो ने उस अघोरी को जमकर पिटाई भी कर दी थी।हुआ यूं कि जब सुबह सुबह कुछ लोग नदी के किनारे गये तो उन्होंने देखा वो अघोरी नदी से एक बहाई हुई लाश को खींचकर किनारे पर ले आया था और उसके मांस को नोच नोचकर खा रहा था।यह देखकर लोगो को बहुत गुस्सा आया और उसकी जमकर पिटाई कर दी।कुछ गांववाले उसके बचाव में आ गए नहीं तो उस दिन उस अघोरी का अंतिम दिन होता।
इसके बाद गांववालो ने पंचायत बिठाया और ये फैसला किया कि इस नरभक्षी को गांव में आने नहीं दिया जाएगा ।अगर कभी उसे इस गांव मे देखा गया तो बहुत ही कठोर दंड दिया जाएगा।गांव वालों को डर था कि कहीं ये नरभक्षी अघोरी उनके बच्चों को भी मारकर न खाने लगे।
अब उस अघोरी ने अपनी बैठकी शमसान के पास जमा ली।कोई भी अब उसके पास नहीं जाता था पर वो अघोरी अपनी मस्ती में ही डूबा हुआ रहता था।उसे न कुछ पाने की इच्छा थी न कुछ खोने का दुःख था।उसके कुछ नशेड़ी भक्त अब भी गाहे बगाहे उसके पास पहुँच ही जाते थे।जिनमें रघु दूधिया भी था।रघु रोजाना ही गांव से दूध इक्कट्ठा करके शहर ले जाकर बेचा करता।शाम को लौटते समय देशी शराब का दो पैकेट लेकर आता और अघोरी के साथ बैठकर मदिरापान करता।अघोरी उसी कुछ अपनी बातें बताता को रघु कुछ अपनी धुनता।दोनो में अच्छी छनने लगी थी।
गांव में एक कुत्ता पागल हो गया था।लोगो पर वह घात लगाकर हमला करने लगा था कुछ लोग तो उसके हमले की वजह से असमय काल के गाल में समा गए थे।कुछ लोग ऊपरवाले की दुआ और डॉक्टर की दया से बच भी गए थे।गांववाले उस कुत्ते तो ढूंढकर मरना चाहते थे मगर वह किसी के हाथ ही नहीं आ रहा था।
एक रात रघु घर वापस लौट कर आ रहा था अमावस्या की रात थी उसे अपने पीछे गरर…गरर… की आवाज सुनाई देती है वह पीछे मुड़कर देखने की कोशिस करता है लेकिन उसे कुछ भी नजर नहीं आता है।मन का वहम समझ कर रघु आगे बढ़ गया।थोड़ा आगे बढ़ने पर उसे महसूस हुआ कोई उसके पीछे पीछे चल रहा है।पीछे मुड़कर देखने पर उसे वही पागल कुत्ता नजर आया।गर्र गर्र करता हुआ मुँह से लार टपकाते कुत्ते ने रघु पर हमला कर दिया।रघु ने उससे बचने की काफी कोशिस की लेकिन सब ब्यर्थ।कुत्ते ने रघु को काटना , नोचना शूरु कर दिया।उसी रास्ते से गुजरने वाले कुछ मुसाफिरों ने रघु को जैसे तैसे कुत्ते से बचाया लेकिन कुत्ते के काटे का घाव बहुत गहरा हो चुका था।
गांव वाले रघु को लेकर भागे भागे अस्पताल पहुचे।डॉक्टर ने एंटी रैबीज का इंजेक्शन लगा दिया।कटे हुए घावों की मरहम पट्टी कर दी और कुछ दवाइयां देकर घर जाने की अनुमति दे दी।कुछ दिनों में ही रघु सनक गया।रैबीज का असर शूरु होते ही इंसान पागल कुत्ते जैसा व्यवहार करने लगता है।उसे ही गांववाले सनक जाना कहते है
अब रघु पागलो की तरह व्यवहार करने लगा था।किसी को भी काटने के लिए दौड़ पड़ता।गांववालो ने उसे बांध दिया ।डॉक्टर आये और चेक कर बताया “अब रघु के बचने की कोई उम्मीद नहीं है एक हफ्ते के भीतर ये मर जायेगा।कोई इसके पास न जाये नहीं तो जिसे ये कटेगा उसकी भी हालत ऐसी ही हो जाएगी”।डॉक्टर के जाते ही गांववाले भी उम्मीद खो चुके थे।उसके घरवालों का रो रोकर बुरा हाल था।
कुछ गांववालो को कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी।उन्होंने कहा इसे उस उस अघोरी के पास ले चलते है।इसका बहुत घनिष्ट मित्र है वो।अंतिम वक़्त है दोनो मिल भी लेंगे और हो सकता है वो कुछ कर सके।लोगो को सलाह पसंद आई।रघु को एक खाट में बांधकर ट्रैक्टर से उस अघोरी के पास ले जाया गया।
अघोरी ने गालियां देते हुए कहा “का शारे!इतने दिन से कहाँ रहले?बिना मदिरा के गटई झुराई गइल बा।और ईसब तोके बानह के काहे ल्याये है”।रघु तो बंधा हुआ ही बस गर्र गर्र कर रहा था।गांववालो ने अघोरी को सारी बात बताई।अघोरी ने कहा खोल दो इसे।गांववालो ने डॉक्टर की बताई सारी बात अघोरी को बताया पर अघोरी ने कहा ठीक है तुमलोग दूर रहो मैं ही इसे खोल देता हूं।
जैसे ही अघोरी ने रघु को खोला रघु ने अघोरी पर हमला कर दिया।अघोरी के बाहों पर बहुत जोर से कुत्ते की तरह काटने लगा।अघोरी मुस्कुराता हुआ बोला “काट शारे जिनता काटना है काट।आज तोहरे मदिरा का कर्जा उतारय ही पड़ी”।रघु जी भरकर जब अघोरी को काट लिया तो शांत हो गया।
अघोरी के कटे हुए घाव से खून निकल रहा था।गांववाले चिंतित थे कि अघोरी को भी अब ये बीमारी न हो जाये।मगर अघोरी के चेहरे पर एक भी सिकन न थी।वो भागता हुआ झाड़ियों में गया और एक घास को मलते हुए लाया और उसके रस को रघु के मुँह में टपका दिया।उसके बाद अघोरी सामने बहती नदी में कूद पड़ा।
थोड़ी देर बाद बाहर आकर अघोरी ने गांववालो से कहा “अब ई सारे के लेइ जा कुछ न होई एके”।अचंभित गांव वाले रघु को लेकर घर चले आये।कुछ ही दिनों में रघु एकदम स्वास्थ्य हो गया।
जब यह बात डॉक्टर को पता चली उसे यकीन नही हुआ वो भागता हुआ रघु के घर पहुँचा।रघु को ठीक देख उसे बहुत ही अचंभा हुआ।उसने सारे चेकअप किया और रघु को एकदम स्वस्थ घोषित कर दिया।
उसके बाद वो डॉक्टर उस अघोरी के पास पहुँचकर उस घास के बारे में जानने की कोशिस करने लगा मगर अघोरी से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने के कारण वो लौट गया।उसने फिर कलेक्टर को इस घटना से अवगत करवाया।कलेक्टर अपनी टीम लेकर उस अघोरी से उस घास के बारे में पूछने की कोशिस की लेकिन वही ढाक के तीन पात।कॉलेक्टर के बहुत समझाने पर अघोरी ने यही कहा “साहब उस वक्त मेरी अवस्था अजीब थी दिमाग मे जो आया मैंने वो कर दिया।इसका न आयुर्वेद से कुछ लेना देना हैन ही उस घास को मै पहचानता हूँ”।
कॉलेक्टर साहब ने बहुत कोशिस की मगर वो नाकाम रहे।तक हारकर वो लौट गए।
लोग इस घटना को अघोरी का प्रताप मानने लगे और ससम्मान अघोरी की वापसी गांव में करवाई गई।
#सत्य घटनाओं पर आधारित#