रहस्यमय बुढ़िया
यह कहानी उस जमाने की है जब शिकार खेलने पर प्रतिबंध नहीं था। चार दोस्त हिरन का शिकार करने बिहार के नवादा जिले के गोविंदपुर के जंगलों में निकले। उनके पास दो राइफलें और दो दोनाली बंदूक थीं। उनलोगों ने चार जंगली मुर्गे मारकर शिकार की शुरुआत की। तभी हिरनों के एक झुंड नजर आया। उन्हें निसाने पर लेने के लिए वे बेतहाशा भागे। इसी क्रम में उनमें से एक बिछड़ गया। उसका नाम शेखर था। वह जंगल की पगडंडियों में रास्ता भटक गया। धीरे-धीरे रात होने लगी। न बाकी दोस्तों का पता चल रहा था न जंगल से बाहर निकलने का रास्ता नज़र आ रहा था। शेखर के कंधे पर बंदूक और झोले में दो मुर्गे थे। अब किसी तरह रात काटनी थी और सुबह होने तक इंतजार करना था। शेखर सी तरह जंगल की एक पगडंडी पर चला जा रहा था कि थोड़ी दूरी पर रौशनी नज़र आई। उसने सोचा कि कोई न कोई तो वहां पर होगा। वह रौशनी की ओर बढ़ता चला गया। नजदीक जाने पर देखा कि वह पुराने महल का खंडहर है जिसके कुछ हिस्से ढह गए हैं कुछ बचे हुए हैं। महल का दरवाजा खुला हुआ था। वह बचे हुए हिस्से की ओर बढ़ा और टार्च की रौशनी में सीढ़ियां चढ़ता हुआ पहली मंजिल पर पहुंच गया। वहां एक कंदील जल रही थी। उसने टार्च बुझा दी और वहीं फर्श पर लेट गया। वह सो भी नहीं पा रहा था और जगे रहना भी मुश्किल लग रहा था।
रात को अचानक एक बूढ़ी औरत आई। बुढ़िया ने पूछा-
क्यों बेटे, लगता है बहुत थक गए हो।
शेखर चौंककर उठा। आंखें मलते हुए देखा। वह 90-95 वर्ष की बूढ़ी महिला थी। उसने सफेद साड़ी पहन रखी थी।
शेखर बोला-जी रास्ता भटक गया था। रात काटने की जगह नज़र आ तो आ गया। थका था तो नींद आ गई। लेकिन आप कौन है?
- मैं यहीं रहती हूं। यहां लोग तुम्हारी तरह भटककर ही आते हैं। इस वीराने में जानबूझकर कौन आता है?
-ये किसका महल है? इतने वीराने में किसने, कब, क्यों बनवाया?
-ये एक लंबी कहानी है। लेकिन पहले कुछ खा पी लो फिर कहानी सुनना।
-खाने को क्या मिलेगा ?
-मैं लाती हूं।
-मेरे पास जंगली मुर्गा है।
-ठीक है निकालो।
शेखर ने झोले से निकालकर मुर्गा दिया। बुढ़िया उसे लेकर चली गई। एक घंटे के बाद रोटी और मुर्गा लेकर आई। शेखर ने भोजन कर लिया।
-अब बताओं मां जी।
बुढ़िया ने बताना शुरू किया…।
यह एक जालिम जमींदार का बनवाया हुआ है। यहां उसकी अय्याशी के लिए लड़कियां पकड़कर लाई जाती थीं। जिस भी लड़की पर उसकी नज़र पड़ जाती उसे वह उसके मां-बाप से कहकर बुलवा लेता। आनाकानी करने पर जबरन उठवा लेता। उसके डर से लोगों ने अपनी बेटियों को घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दिया था। फिर भी उसके आदमी किस-किस घर में जवान लड़की है, पता कर लेते थे। वह इस हवेली में बुला ली जाती थी। एक बार की बात है। यहां से पांच कोस की दूरी पर एक गांव है रघुनाथपुर। वहां एक किसान परिवार के पास मुंबई से एक रिश्तेदार आए। उनके साथ बेटी सुरेखा भी थी। किसान ने वहां के हालात की जानकारी देकर समझाया कि सुरेखा को घर से बाहर नहीं जाने देना है। सुरेखा आधुनिक लड़की थी। जूडो-कराटे जानती थी। उसने कहा कि मुंबई से गांव में आई है तो गांव का जीवन देखेगी। जमींदार उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह अपनी जिद में खेत-खलिहान बाग-बगीचे का चक्कर लगाती रहती।
एक दिन जमींदार की सवारी उधर से गुजर रही थी। उसकी नज़र सुरेखा पर पड़ गई। उसने से रोककर पूछा-
तुम इस गांव की तो नहीं हो। कहां से आई हो? किसके घर पर ठहरी हो?
सुरेखा ने पूछा-
तो तुम्हीं जमींदार हो जो लड़कियों को उठा लेते हो?
-बहुत समझदार हो? कहां ठहरी हो?
तभी किसान भागा-भागा वहां पहुंचा जमींदार से बोला-
सरकार ये मेहमान है। एक-दो रोज में चली जाएगी।
-ठीक है आज तो है। आज रात को यह मेरी मेहमान होगी। शाम को इसके लिए सवारी भेज दूंगा।
इतना कहकर जमींदार चला गया।
किसान ने सुरेखा से विफरकर कहा-
मना किया था न बाहर मत घूमो। वही हा जिसका डर था।
-चिंता मत कीजिए। वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा और आज के बाद वह इस लायक नहीं रहेगा कि किसी पर जुल्म ढा सके। आप निश्चिंत रहिए। सवारी आने दीजिए। मैं जाउंगी और आराम से लौट आउंगी।
शाम को जमींदार ने डोली भेजा। सुरेखा आराम से उसपर बैठ गई। हवेली में आने के बाद जमींदार उसे हवस का शिकार बनाने के लिए बढ़ा तो उसने कराटे का एक वार कर उसे अचेत कर दिया। इसके बाद हवेली की छत पर चली गई। उसने देखा कि बाहर चप्पे-चप्पे पर उसके हथियारबंद पहरेदार तैनात थे। वह निकलने का उपाय सोच ही रही थी कि जमींदार तलवार लिए हुए छत पर आया।
-तुम बहादुर हो। शेरनी हो। मेरी बात मान लो नहीं तो मरने के लिए तैयार हो जाओ।
सुरेखा ने एक छलांग लगाई। जमींदार की तलवार उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई। जमींदार ने सुरेखा को उठा लिया और छत से फेंक दिया लेकिन सुरेखा ने गिरते-गिरते उसकी बांह पकड़ ली और वह भी सके साथ नीचे गिर पड़ा। दोनों की मौत हो गई। सुरेखा की मौत की खबर सुनकर उसकी मां मुंबई से आई। उसने जमींदार परिवार को निर्वंश हो जाने का शाप दिया। इसके बाद जमींदार परिवार में लोगों की किसी न किसी कारण मौत होने लगी और सका वंश खतम हो गया। यही इस वीरान हवेली की कहानी है। सुरेखा और उसकी मां की प्रेतात्मा इसी हवेली में रहती है।
-प्रेतात्मा रहती है? लेकिन मुझे तो परेशानी नहीं हुई। थोड़ा डर लगा लेकिन नींद बी आ गई।
-सारी प्रेतात्माएं बुरी नहीं होतीं बेटे। उनकी जिससे दुश्मनी होती है उसी का नुकसान करती हैं। भले लोगों की मदद करती हैं।
-आपको कभी दिखाई पड़ीं।
-हां, अक्सर। अच्छा, अब सुबह होने वाली है। मैं चलती हूं। हवेली से निकलकर बाईं तरफ पगडंडी से सीधा निल जाना। तुमको जंगल के बाहर निकलने का रास्ता मिल जाएगा।
तभी एक 17-18 साल की लड़की आई बोली-
मां अब चलो भी…।
-यह कौन है?….शेखर ने पूछा।
-यह सुरेखा है और मैं इसकी मां।
शेखर कुछ समझ पाता ससे पहले दोनों हवा में विलीन हो गईं। उसने अपनी राइफल उठाई और बाहर निकल आया। हल्का-हल्का उजाला हो चला था। उसने एक नज़र हवेली पर डाली और बुढ़िया की बताई पगडंडी पर बढ़ता चला गया।