दूसरे दरवेश की कहानी

Muslimtrain

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राजा के हुकुम के अनुसार उसी दिन आधी रात को जब अँधेरा गाढ़ा हो गया तो राजकुमारी को जिसको इतने नाज़ों से पाला गया था जिसने अपने महल के अलावा और कुछ देखा नहीं था राजा के नौकर एक कूड़ा ले जाने वाली गाड़ी में बिठा कर ऐसी जगह ले गये जहाँ कोई चिड़िया भी पर नहीं मारती थी आदमी के वहाँ होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

उन्होंने उसको वहाँ छोड़ा और लौट आये। राजकुमारी का दिल तो यह सब देख कर इतना बैठ गया कि वह तो कुछ सोच ही नहीं सकी। वह क्या थी और अब क्या हो गयी थी। उसने अल्लाह की देहरी पर अपनी प्रार्थना कहनी शुरू की —

“ओ अल्लाह तू तो इतना ताकतवर है कि तू जिस चीज़ की इच्छा करता है वह हो जाती है और जो तू चाहेगा वह तू कर सकता है। अब तू मेरे बारे में जो भी इच्छा करेगा वह हो जायेगा। जब तक मेरी साँस चल रही है तब तक मुझे तेरी कृपा का विश्वास रहेगा। मैं निराश नहीं होऊँगी। ”

यही सोचते सोचते वह सो गयी। सुबह हुई तो राजकुमारी की आँख खुली। आदत के अनुसार सुबह उठते ही उसने अपनी साफ सफाई के लिये पानी माँगा।

कि तभी उसको पिछली रात की याद आयी। उसने अपने मन में कहा — “तू कहाँ है और मैं किससे बोल रही हूँ। ” यह सोच कर वह उठी और उसने तयम्मुम[2] की। फिर प्रार्थना की और अपने बनाने वाले को धन्यवाद दिया।

ओ नौजवान। राजकुमारी के दुखी दिल की हालत तो सोच कर ही दम घुटने लगता है। ज़रा उस भोले भाले दिल से पूछो जिसको यह महसूस हो रहा होगा। वह अल्लाह के ऊपर भरोसा करके वहीं बैठी रही और गाती रही —

जब मेरे दाँत नहीं थे तब तूमे मुझे दूध दिया

जब तूने मुझे दाँत दिये तो तूने मुझे खाना दिया

जो हवा में उड़ती चिड़ियों की परवाह करता है

धरती के सब जानवरों की देखभाल करता है वही तेरी भी देखभाल करेगा

तू क्यों दुखी होती है ओ अच्छे दिमाग वाली दुखी हो कर तुझे कुछ नहीं मिलेगा

जो बेवकूफों को अक्लमन्दों को सारी दुनिया को देता है

उसी तरह से वह तुझको भी देगा

और यह सच है। जब किसी चीज़ का कोई साधन नहीं रह जाता तब अल्लाह को याद किया जाता है। नहीं तो हर आदमी अपने तरीके से अपने आपको हकीम लुकमान[3] या बू अली सीना[4] समझता है।

अब आप अल्लाह के तरीके सुनिये। इसी तरीके से तीन दिन गुजर गये। इस बीच राजकुमारी जी के मुँह में अन्न का एक दाना नहीं गया था।

उनका फूलों जैसा शरीर काँटों जैसा सूखा हो गया था। उनका रंग जो कभी सुनहरा हुआ करता था अब हल्दी की तरह पीला पड़ गया था। उनका मुँह अकड़ गया था। उनकी आँखें पथरा गयी थीं। पर अल्लाह की दुआ से उनकी साँस अभी आ जा रही थी। और जब तक साँस है तब तक आस है।

चौथे दिन सुबह एक साधु वहाँ आया। उसका चेहरा खिज्र[5] की तरह से रोशनी से चमक रहा था। राजकुमारी को इस हालत में देख कर वह बोला — “बेटी। हालाँकि तेरा पिता एक राजा है फिर भी ये दुख भोगने तो तेरी किस्मत में लिखे थे। अब इस साधु को तू अपना नौकर जान और हमेशा अल्लाह के बारे में सोचा कर। वह हमेशा ठीक करेगा। ”

जो कुछ थोड़ा बहुत खाना साधु के थैले में पड़ा था वह उसने राजकुमारी के सामने रख दिया। उसके बाद वह राजकुमारी के लिये पानी ढूँढने चला गया। उसको एक कुँआ तो दिखायी दे गया पर उसको कहीं कोई घिर्री और बालटी नहीं दिखायी दी जिससे वह पानी निकाल सकता।

उसने एक पेड़ से कुछ पत्तियाँ तोड़ीं और उनसे एक प्याला सा बना लिया। उसके पास एक रस्सी थी सो उसने उसे प्याले में बाँध दिया और थोड़ा सा पानी कुँए से खींच लिया और राजकुमारी को दे दिया।

कुछ ही देर में वह होश में आ गयी। उसको बिना किसी सहायता के और अकेला देख कर उसे काफी तसल्ली दी और उसका दिल खुश करने की कोशिश की पर ऐसा करते समय वह खुद रो पड़ा।

राजकुमारी ने जब उसको अपने दुख से दुखी देखा और उसकी तसल्ली सुनी तो वह कुछ आराम महसूस करने लगी। उस दिन से उस साधु ने अपना यह नियम बना लिया कि वह सुबह को भीख माँगने जाता था और सारे दिन में उसे जो कुछ भी उसको मिलता था वह उसे ला कर राजकुमारी को दे दिया करता था।

इस तरह कुछ दिन बीत गये। एक दिन राजकुमारी ने अपने बालों में तेल लगाने की सोचा सो जैसे ही उसने अपनी चोटी खोली तो उसके बालों में से एक चमकदार मोती नीचे गिर पड़ा।

राजकुमारी ने वह मोती साधु को दे दिया और उससे कहा कि वह उसको बाजार में बेच दे और उसका पैसा ला कर उसको दे दे। उसने उसको बाजार में बेच दिया और उससे मिला पैसा ला कर राजकुमारी को दे दिया।

फिर राजकुमारी की इच्छा हुई कि वह उसी जगह अपने रहने के लिये कोई घर बनवा ले। साधु ने कहा — “बेटी तू अपने घर की नींव रखने के लिये जमीन खोद और कुछ मिट्टी इकठ्ठी कर। फिर मैं कुछ पानी इकठ्ठा करके लाऊँगा उसे मिट्टी में मिलाऊँगा और फिर उससे तेरे लिये एक कमरा बनाऊँगा। ”

उसकी यह सलाह सुन कर राजकुमारी ने वहाँ जमीन खोदनी शुरू की। जब वह करीब तीन फीट जमीन खोद चुकी तो लो वहाँ उसे क्या दिखायी दिया? एक बहुत बड़ा कमरा जो सोने और जवाहरातों से भरा हुआ था।

उसने उसमें से 4–5 मुठ्ठी सोना निकाल लिया और उसे वहीं का वहीं बन्द कर दिया। उसने उसके ऊपर मिट्टी डाल कर उसे सपाट कर दिया। इस बीच साधु वापस आ गया।

राजकुमारी ने उससे कहा — “आप राज मजदूर ले कर आइये और कई तरह के कारीगर भी जो अपने काम में बहुत होशियार हों ताकि एक ऐसा शानदार महल बनवाया जा सके जैसा कसरा[6] का है और नीमान[7] के महल से बढ़िया हो। शहर को किले जैसा मजबूत बनवाया जाये। उसमें एक किला हो एक बागीचा हो एक कुँआ हो और एक ऐसी सराय[8] हो जिसकी सानी की कोई सराय कहीं नहीं हो।

पर सबसे पहले इस सबका कागज पर एक प्लान बनाइये और उसे मेरे पास मेरी जाँच के लिये ले कर आइये। ”

साधु बहुत सारे चतुर होशियार अक्लमन्द कारीगर ले कर आया और उनको तैयार करके रखा। राजकुमारी जी की मरजी के अनुसार अलग अलग तरह की इमारतें बनने का काम शुरू हो गया। अलग अलग तरीके का काम सँभालने के लिये अलग अलग चतुर और भरोसे वाले लोग चुने गये।

इतनी सुन्दर इमारतों के बनने की खबर धीरे धीरे अल्लाह का साया यानी राजा के पास पहुँची। अब राजा तो राजकुमारी का अपना पिता ही था। यह खबर सुन कर वह तो आश्चर्य में पड़ गया। उसने हर एक से पूछा कि यह कौन है जिसने इतनी शानदार इमारतें बनानी शुरू की हैं।

अब इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं था सो कोई भी राजा को कुछ नहीं बता सका। सबने हाथ खड़े करके कहा — “आपके नौकरों में से किसी को नहीं पता कि ये इमारतें कौन बना रहा है। ”

इस पर राजा ने अपने एक कुलीन आदमी को इस सन्देश के साथ भेजा कि “मैं ये इमारतें देखना चाहता हूँ और यह जानना चाहता हूँ कि तुम कौन से देश की राजकुमारी हो और किस परिवार की हो। क्योंकि मेरी यह इच्छा है कि मैं इन सब बातों को जानूँ। ”

राजकुमारी ने जब यह सन्देश सुना तो वह अपने दिमाग में बहुत खुश हुई और जवाब में राजा को लिखा “दुनिया की खुशहाली की रक्षा करने वाले। योर मैजेस्टी के मेरे महल में आने की खबर सुन कर मुझे बहुत खुशी हुई। यह मेरे लिये, आपकी दासी के लिये, बहुत इज़्ज़त और शान की बात है।

यह उस जगह के लिये कितनी खुशकिस्मती की बात है जहाँ योर मैजेस्टी के कदम पड़ें और उन रहने वालों के लिये भी जिनके ऊपर आपकी खुशहाली का साया पड़े। अल्लाह करे दोनों को आपका प्यार मिलता रहे।

यह दासी आशा करती है कि कल बृहस्पतिवार को बहुत अच्छा दिन है और यह दिन मेरे लिये भी नौरोज़ के दिन[9] से भी ज़्यादा कीमती होगा। योर मैजेस्टी तो सूरज की तरह से हैं उनका बहुत बहुत स्वागत है।

आपने यहाँ आने की सोच कर हम तुच्छ कण को खुश हो कर अपनी रोशनी और अपनी शान दी है तो जो कुछ भी आपकी यह तुच्छ दासी आपको दे सकती है उसको आप स्वीकार करके मुझे पर कृपा करें।

योर मैजेस्टी के लिये तो यह केवल मामूली मेहमानदारी होगी। इससे ज़्यादा कुछ कहना तो योर मैजेस्टी की इज़्ज़त में सीमा से आगे गुजर जाना होगा। ”

जो कुलीन आदमी राजा का सन्देश ले कर आया था उसे उसने कुछ भेंटें दीं और यह सन्देश दे कर उसे विदा किया।

राजा ने राजकुमारी जी का सन्देश पढ़ा और उसको जवाब में लिखा — “हम आपका न्यौता स्वीकार करते हैं। हम जरूर आयेंगे। ”

राजकुमारी ने अपने सब नौकरों को राजा के स्वागत के लिये तुरन्त ही सब जरूरी तैयारियाँ करने का हुकुम दिया। आनन्द मनाने के लिये भी सब इन्तजाम किये गये उसकी दावत का खास ध्यान रखा गया ताकि राजा जब आये और यह सब देखे और खाये पिये तो खुश हो जाये।

इसके अलावा जो कोई राजा के साथ आये बड़ा या छोटा उसका भी खास ख्याल रखा जाये ताकि वह भी अपने घर सन्तुष्ट हो कर जाये।

राजकुमारी जी की यह खास हिदायत थी कि हर तरह का खाना, नमकीन हो या मीठा जो भी बनाया जाये वह सब इतना स्वादिष्ट बनाया जाये कि अगर उसे कोई ब्राह्मण की बेटी चख ले तो वह भी मुसलमान हो जाये।

जब शाम हुई तो राजा राजकुमारी जी के महल गया तो वह एक बिना ढकी राजगद्दी पर बैठी हुई थी उसके पास उसकी दासियाँ खड़ी हुई थीं। वह वहाँ से उठ कर राजा का स्वागत करने गयी।

जब उसने राजा के सिंहासन की तरफ देखा तो इतनी इज़्ज़त के साथ उसको शाही सलाम किया कि राजा तो यह देख कर आश्चर्यचकित रह गया कि वह उसी इज़्जत से उसको राजगद्दी की तरफ भी ले गयी। उसने राजा के लिये उनका सिंहासन जवाहरात जड़ा हुआ बनवाया था।

उसने चाँदी का एक चबूतरा भी बनवाया था जो एक लाख पच्चीस हजार चाँदी के टुकड़ों से और 101 थाली भर कर जवाहरात और सोने से बनाया गया था। [10]

इसके अलावा गरम कपड़े, शाल, मलमल, सिल्क, ब्रोकेड, दो हाथी और 10 ईराक और यमन के घोड़े जिनकी साज़ सब जवाहरातों से जड़े हुए थे शाह को देने के लिये तैयार किये गये थे। सो उसने वे सब राजा को दिये और उनके सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी। राजा ने बहुत खुश हो कर उससे पूछा — “तुम किस देश की राजकुमारी हो और यहाँ किसलिये आयी हो?”

राजकुमारी राजा को सिर झुकाया और बोली — “यह दासी वह अपराधिनी है जिसको शाही गुस्से की वजह से जंगल भेज दिया गया था। और ये सब चीज़ें जो योर मैजेस्टी यहाँ देख रहे हैं यह सब अल्लाह का करिश्मा है। ”

यह सुन कर राजा के खून ने ज़ोर मारा और वह उठ कर खड़ा हो गया और प्यार से राजकुमारी को गले लगा लिया। उसका हाथ पकड़ कर उसने उसको उस कुरसी पर बिठाया जिसे उसने राज सिंहासन के पास रखी हुई थी।

फिर भी राजा ने जो कुछ वहाँ देखा उसे देख कर वह बहुत आश्चर्यचकित था।

फिर उसने हुकुम दिया कि रानी और उसकी दूसरी बेटियों को तुरन्त ही वहाँ लाया जाये। जब वे वहाँ आयीं तो वे बेटी और बहिन को देख कर पहचान गयीं। उन्होंने सबने उसको गले लगाया और उसके गले लग कर खूब रोयीं। फिर सबने अल्लाह का लाख लाख धन्यवाद दिया।

राजा ने सबको अपने पास बिठा कर साथ साथ खाना खाया जो उनके लिये तैयार किया गया था। जब तक राजा ज़िन्दा रहा समय ऐसे ही गुजरता रहा। कभी राजा राजकुमारी से मिलने के लिये आता रहा और कभी राजकुमारी को अपने साथ अपने महल ले जाता रहा।

जब राजा मर गया तो उसका राज्य इसी राजकुमारी के हाथ में आ गया क्योंकि इस राजकुमारी के अलावा कोई और दूसरा आदमी राजा बनने के लायक नहीं था।

ओ नौजवान। राजकुमारी का यही इतिहास है जो आपने अभी सुना। अन्त में खुदा की दी हुई सम्पत्ति कभी धोखा नहीं देती पर उसके लिये आदमी के इरादे अच्छे होने चाहिये।

खुदा की दी हुई इस दौलत में से कितना भी खर्च कर लिया जाये उतना ही बढ़ जाता है। खुदा के मामलों पर शक करना किसी भी धर्म में नहीं बताया गया है। ”

दासी यह सब कह कर बोली — “क्या आप अभी भी नीमरोज़ देश जाना चाहते हैं क्या आप अभी भी यह सोचते है कि आप वहाँ से वह खबर ला सकते हैं जिसको लाने के लिये आपने भेजा जा रहा है तो आप जल्दी से चले जाइये। ”

मैं बोला — “मैं अभी जाता हूँ। अगर अल्लाह की मेहरबानी हुई तो मैं बहुत जल्दी वापस आऊँगा। ” आखीर में राजकुमारी जी से विदा ले कर और अल्लाह पर भरोसा करके मैं नीमरोज़ की तरफ चल दिया।

एक साल तक ठोकरें खाता हुआ और मुश्किलें झेलता हुआ मैं नीमरोज़ शहर पहुँच गया। वहाँ पहुँच कर मैंने देखा कि चाहे कोई कुलीन आदमी हो या मामूली आदमी हो सभी काले कपड़े पहन कर घूम रहे हैं। जो कुछ भी मैंने सुना उसे मैंने ठीक से समझा।

कुछ दिनों बाद दोयज की शाम[11] आयी तो महीने के पहले दिन शहर के सारे छोटे और बड़े लोग बच्चे और कुलीन लोग राजकुमार और स्त्रियाँ एक बड़े मैदान में इकठ्ठे हुए।

मैं भी यह देख कर चकित रहा गया और कुछ बेचैनी महसूस करने लगा। मैं भी उन सबके साथ एक तीर्थयात्री के वेश में वहीं चला गया अपने देश और सम्पत्ति से अलग। यह दृश्य देखने के लिये मैं भी वहाँ खड़ा हुआ इन्तजार कर रहा था कि देखूँ कि अब मुझे वहाँ क्या देखने को मिलता है।

इतने में मुँह से झाग निकालते हुए बैल पर सवार एक नौजवान चीखते चिल्लाते गरजते जंगल की तरफ से वहाँ आ पहुँचा।

मैं दुखी था कि इस घटना को देखने के लिये जिसके लिये मैंने इतनी तकलीफें सही थीं और कितने खतरों को पार किया था केवल उसका हाल जानने के लिये मैं वहाँ आया था। फिर भी उस नौजवान को देख कर भौंचक्का रह गया और आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रह गया।

उस नौजवान ने अपने रोजमर्रा के रीति रिवाज के अनुसार वही किया जो वह करता था और फिर जंगल की तरफ चला गया। और शहर वालों की भीड़ भी अपने अपने घरों को वापस चली गयी। जब मैं होश में आया तो मैं पछताया “यह तुमने क्या किया। अब यह मौका पाने के लिये तुमको रमज़ान के महीने[12] की तरह से एक एक दिन गिन गिन कर एक महीने का इन्तजार करना पड़ेगा।

अब और कोई रास्ता नहीं था यह सोच कर मैं भी सबके साथ वहाँ से चला आया। मैंने वह महीना रमज़ान के महीने की तरह से एक एक दिन गिन गिन कर काटा। आखिर फिर अमावस्या आयी तो मुझे लगा जैसे मेरे लिये ईद आ गयी हो।

महीने के पहले दिन वहाँ का राजा और सब रहने वाले फिर से उसी मैदान में आ कर इकठ्ठे हुए। उस दिन मैंने पक्का इरादा कर लिया कि जो होना है वह हो ले पर मैं इस मामले की छानबीन करके ही रहूँगा।

अचानक वह नौजवान फिर से हर बार की तरह से अपने पीले बैल पर सवार हो कर चीखता चिल्लाता गरजता वहाँ आ पहुँचा। बैल से उतर कर वह नीचे जमीन पर बैठ गया। उसके एक हाथ में नंगी तलवार थी और दूसरे हाथ में बैल हाँकने वाला कोड़ा।

उसने बरतन अपने नौकर को दिया उसने हमेशा की तरह से उसको सबको दिखाया और फिर वापस ले जा कर अपने मालिक को दे दिया। भीड़ उस बरतन को देख कर रो पड़ी। नौजवान ने वह बरतन तोड़ दिया। और नौकर की गरदन पर एक ऐसा घूँसा मारा कि उसका सिर उसके धड़ से अलग हो गया। वह खुद अपने बैल पर फिर से चढ़ा और जंगल की तरफ भाग गया।

मैंने अपनी पूरी गति से उसका पीछा किया पर शहर के रहने वालों ने मुझे मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया — “यह तुम क्या करने जा रहे हो? जानते बूझते तुम अपने आपको क्यों मारना चाहते हो? और अगर तुम अपनी ज़िन्दगी से इतना ही थक गये हो तो मरने के और बहुत तरीके हैं जिनसे तुम अपने आपको मार सकते हो। ”

मैंने उनसे कितनी विनती की कि वे मुझे जाने दें बहुत ज़ोर भी लगाया ताकि मैं उनकी पकड़ से निकल कर भाग सकूँ पर मैं अपने आपको उनकी पकड़ से न छुड़ा सका। तीन चार आदमी मुझसे इस तरह चिपक कर खड़े हुए थे कि मुझे वहाँ से निकलने का रास्ता ही नहीं मिला। वे मुझे पकड़ कर शहर की तरफ ले गये।

मैंने एक महीना और इस अशान्ति में काटा।

जब उस महीने का आखिरी दिन खत्म हो गया तो अगले दिन सुबह शहरी लोग फिर काले कपड़े पहन कर उसी मैदान की तरफ चल दिये।

पहले की तरह से मैं भी उनसे अलग रह कर अपनी सुबह की प्रार्थना के समय उठ गया और उन लोगों के जंगल तक पहुँचने से पहले ही वहाँ जा कर उसी सड़क के पास छिप गया जिससे वह नौजवान आता था। क्योंकि वहाँ से मुझे उसका पीछा करने से कोई नहीं रोक सकता था।

हर बार की तरह से वह नौजवान अपने बैल पर सवार हो कर वहाँ आया अपने वही काम किये जो वह पहले करता था बैल पर चढ़ा और वापस जाने लगा। मैंने उसका पीछा किया और बहुत ज़ोर से भागा। मैं उसके पास तक आ गया।

मेरे पैरों की आवाज से उसे पता चल गया कि कोई उसका पीछा कर रहा था। तुरन्त ही उसने अपने बैल का कोड़ा घुमाया एक बहुत ज़ोर की आवाज की और मुझे धमकी दी। मैं तभी भी नहीं रुका तो उसने अपनी तलवार खींच ली और मेरी तरफ बढ़ा।

वह मुझे मारने ही वाला था कि मैं बड़ी इज़्ज़त के साथ नीचे झुक गया और उसको सलाम किया और हाथ जोड़ कर उसके सामने चुपचाप खड़ा हो गया।

लगता था कि उसके अन्दर आदमी को समझने की ताकत थी सो उसने अपना तलवार उठाया हाथ नीचे करके कहा — “ओ तीर्थयात्री तुम मेरे हाथ से बेकार ही मारे जाते पर अब तुम बच गये हो। तुम्हारी उम्र भी लम्बी हो गयी है। अब तुम यहाँ से चले जाओ। तुम कहाँ जा रहे हो?”

उसके बाद उसने अपनी कमर में बँधे फुँदने से लटका हुआ जवाहरात जड़ा एक बड़ा चाकू निकाला और मेरी तरफ फेंक दिया और बोला — “इस समय तुम्हें देने के लिये मेरे पास कोई पैसा नहीं है। तुम यह चाकू राजा के पास ले जाओ। इससे तुम्हें जो तुम चाहोगे वह तुम्हें मिल जायेगा। ”

मैं उससे इतना डर गया था कि काफी देर तक तो मेरी बोलने की हिलने की ताकत ही चली गयी। मेरा गला रुँध गया था और मेरे पैर बहुत भारी हो गये थे।

यह कह कर वह बहादुर नौजवान फिर आगे बढ़ गया। पहले तो मैंने सोचा “जो कुछ हो रहा है वैसा ही होने दो। ” पर फिर मैंने सोचा मेरी इस हालत में अभी पीछे रहना बेवकूफी होगी क्योंकि हो सकता कि अपना काम करने काम यह मौका मुझे बार बार न मिले।

इसलिये अपनी ज़िन्दगी की चिन्ता न करते हुए मैं फिर से उसके पीछे भाग लिया। वह फिर पीछे मुड़ा और उसने अपने पीछे न आने की फिर से धमकी दी और फिर मारने के लिये तैयार हो गया।

मैंने अपनी गरदन उसके सामने कर दी और उसको हर पवित्र चीज़ की कसम देते हुए उससे कहा — “ओ फारस के आजकल के रुस्तम। [13] मुझे इस तरह से मारो कि मेरा शरीर साफ तरीके से दो हिस्सों में बँट जाये। कोई एक धागा भी जुड़ा न रहे। और इस तरह से मुझे अपनी इस गन्दी घूमने वाली ज़िन्दगी से आजाद कर दो। मैं तुम्हें अपने खून से आजाद करता हूँ। ”

वह बोला — “ओ राक्षस के चेहरे वाले। तू अपना खून मेरे सिर पर बेकार में ही क्यों डालता है और मुझे अपराधी बनाता है। जा चला जा जहाँ तुझे जाना हो। तुझे अपनी ज़िन्दगी में क्या तकलीफ है। यह ज़िन्दगी तेरे ऊपर बोझ क्यों है। ”

जो कुछ उसने कहा मुझ पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। मैं फिर भी आगे बढ़ता ही रहा। उसने जानते बूझते हुए भी मेरी बात नहीं मानी और मैं आगे बढ़ता ही रहा।

दो कोस और आगे जाने के बाद जंगल खत्म हो गया और एक वर्गाकार इमारत आ गयी। वह नौजवान उसके दरवाजे तक गया और भयानक चीख मारी। उसका दरवाजा अपने आप खुल गया। वह उसके अन्दर चला गया और मैं बाहर ही खड़ा रह गया।

मैंने सोचा “अब मैं क्या करूँ। ”

मैं तो सोचता ही रह गया। पर कुछ ही देर में एक दास बाहर निकल कर आया और एक सन्देश ले कर आया “आइये अन्दर आइये। उन्होंने आपको अन्दर बुलाया है। शायद मृत्यु दूत[14] आपके सिर पर मँडराना चाहता है। पता नहीं आपके ऊपर कौन सी बदकिस्मती आ पड़ी है। ”

मैंने जवाब दिया — “यह तो मेरी खुशकिस्मती है। ”

यह कह कर निडर हो कर मैं उस इमारत के अन्दर घुस गया और एक बागीचे में आ निकला। वह दास मुझे एक महल की तरफ ले चला जहाँ वह नौजवान एक मसनद के सहारे अकेला बैठा हुआ था। उसके सामने एक सुनार के कुछ औजार रखे हुए थे। उसने अभी अभी एक पन्ने की डाली तैयार कर के रखी हुई थी।

जब उसके उठने का समय आया तो उसके सारे दास जो उसके आस पास खड़े थे वे सब अलग अलग कमरों में जा कर छिप गये। मैं भी डर के मारे एक छोटे से कमरे में छिप गया।

नौजवान उठा उसने सारे कमरों के ताले लगाये और बाहर बागीचे के एक कोने में चला गया। वहाँ उसने अपने उस बैल को पीटना शुरू कर दिया जिस पर सवार हो कर वह उस शहर में आया करता था।

जानवर के चीखने की आवाज मेरे कानों में पड़ी तो मेरा दिल डर के मारे धड़कने लगा। पर क्योंकि मैं इस भेद को जानने के लिये ऐसे कई खतरों से जूझ चुका था सो मैंने डर से काँपते हुए भी दरवाजा जबरदस्ती खोल दिया और एक पेड़ के तने के पीछे से खड़ा हो कर देखने लगा कि वहाँ क्या हो रहा था।

नौजवान ने वह डंडा फेंक दिया जिससे वह बैल को मार रहा था और एक कमरा खोल कर उसमें घुसा। तुरन्त ही वह उसमें से बाहर भी निकल आया और बैल की पीठ को अपने हाथ से सहलाने लगा। उसने उसका मुँह चूमा फिर उसको दाना और घास दे कर मेरे पास आया। यह देख कर मैं वहाँ से भागा और डर के मारे एक कमरे में आ कर छिप गया।

उसने आ कर सब कमरों की जंजीरें खोलीं और उसके बाद उसके सारे दास कमरों से बाहर निकल आये। उनके हाथों में एक छोटा कालीन था और हाथ धुलाने के लिये एक पानी का बरतन और हाथ धोने के लिये एक तसला था।

हाथ मुँह धोने के बाद वह प्रार्थना के लिये खड़ा हो गया। प्रार्थना खत्म करके उसने पुकारा — “वह तीर्थयात्री कहाँ है?”

अपना नाम सुन कर मैं कमरे से निकल कर उसकी तरफ भागा और उसके सामने जा कर खड़ा हो गया। उसने मुझे बैठने के लिये कहा तो मैंने उसको सलाम किया और बैठ गया। खाना लगाया गया। उसने उसमें से कुछ खाया और बाकी मुझे दिया। मैंने भी खाना खाया।

जब वहाँ से खाने के बरतन हटा लिये गये तो हमने हाथ धोये। उसके बाद उसने अपने नौकरों को वहाँ से भेज दिया। अब उस कमरे में केवल हम दोनों ही रह गये। अब वह मुझसे बोला।

उसने मुझसे पूछा — “दोस्त तुमको ऐसी कौन सी परेशानी है तुम्हारे ऊपर ऐसी कौन सी आफत टूट पड़ी है कि तुम अपनी मौत ढूँढते फिर रहे हो। ”

तब मैंने उसको शुरू से ले कर आखीर तक अपनी सारी कहानी बतायी और बाद में कहा — “तुम्हारी मेहरबानी से मुझे लग रहा है कि मेरी इच्छा पूरी हो जायेगी। ”

मेरी यह बात सुन कर उसने एक गहरी साँस भरी और पागल सा हो कर बोला — “ओ अल्लाह तुम्हारे सिवा प्यार का दर्द और कौन जान सकता है। जिसकी फटी न पैर बिवाई वह क्या जाने पीर परायी। [15] इसका दर्द तो केवल वही जानता है जिसने प्यार को महसूस किया हो।

प्यार का दर्द तो प्यार करने वाले से पूछो

उससे नहीं जो बहाने बनाता है बल्कि उससे जो सच्चा प्रेमी है”

कुछ मिनटों में जब वह कुछ होश में आया उसने फिर से एक आह भरी। उसकी आह सारे कमरे में गूँज गयी। तब मैंने महसूस कि वह भी प्यार में ऐसे ही दुखी था जैसे मैं।

जब मुझे यह पता चला तो मेरी हिम्मत कुछ बढ़ गयी। मैंने उससे कहा — “मैंने तुम्हें अपनी सारी कहानी बता दी तो मेरे ऊपर यह मेहरबानी भी करो कि तुम मुझे अपनी ज़िन्दगी की पुरानी घटनाएँ बता दो।

फिर सबसे पहले जो कुछ भी मुझसे हो सकेगा मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। तुम्हारे दिल की इच्छा पूरी करने के लिये मैं अपनी सारी कोशिशें लगा दूँगा। ”

थोड़े में कहो तो उसको लगा कि मैं उसका सच्चा साथी था सो उसने मुझे अपनी ज़िन्दगी की घटनाएँ सुनानी शुरू कर दीं।

वह बोला — “सुनो ओ दोस्त। जिसके दिल में दर्द की आग जल रही है वह इस नीमरोज़ देश का राजकुमार है। राजा यानी मेरे पिता ने मेरे जन्म पर बहुत सारे भविष्य बताने वालों को बहुत सारे ज्योतिषियों को और कई विद्वानों को इकठ्ठा किया और उनसे मेरी जन्म कुंडली बनाने के लिये कहा ताकि मेरी ज़िन्दगी में पल पल पर क्या होने वाला है यह जान सकें।

पल पल पर ही नहीं बल्कि हर घंटे हर प्रहर हर दिन हर सप्ताह हर महीने हर साल क्या हो रहा है। राजा के हुकुम से सब लोग इकठ्ठा हुए।

सबने आपस में सलाह करके अपने अपने ज्ञान का इस्तेमाल करके मेरी जन्मपत्री बनायी और फिर उसके हिसाब से मेरी ज़िन्दगी के बारे में बताया।

उन्होंने बताया कि अल्लाह की दुआ से राजकुमार इतने शुभ मुहूर्त में पैदा हुआ है कि राज्य के मामले में वह अलैक्ज़ैन्डर[16] के बराबर होगा और न्याय करने वालों में वह नौशेरवाने आदिल की तरह होगा।

वह हर तरह के ज्ञान में होशियार होगा और भी जो वह जानना चाहेगा वह पूरी तरीके से जान लेगा। दया और दान में वह इतना बड़ा होगा कि दुनिया हातिम ताई और रुस्तम[17] को भूल जायेगी।

पर जब तक वह 14 साल का होगा तब तक के लिये उसके ऊपर एक खतरा है। उस समय तक अगर उसने सूरज या चाँद को देख लिया तो वह एक वहशी राक्षस बन सकता है। बहुत सारे लोगों का खून बहा सकता है। वह समाज में रह कर बेचैन हो जायेगा और जंगल में भाग जायेगा। जंगल जा कर वह चिड़ियों और जानवरों के साथ रहेगा।

इसलिये उस समय इस बात पर उसका खास रखने की जरूरत है कि वह 14 साल की उम्र तक सूरज और चाँद नहीं देखे। बल्कि यहाँ तक कि वह आसमान की तरफ भी नहीं देखे। अगर 14 साल का यह समय बिना किसी खतरे के सुरक्षित रूप से निकल जाता है तो फिर यह ज़िन्दगी भर शान्ति से खुशहाली में राज्य करेगा।

यह सुन कर राजा ने यह बागीचा बनवाया। इसमे कई तरह के कमरे बनवाये। उन्होंने मेरे लिये यह हुकुम भी दिया कि मुझे एक बन्द कमरे में बड़ा किया जाये जिसकी दीवारों पर फ़ैल्ट[18] लगी हो ताकि उसमें दिन में सूरज और रात को चाँद की एक किरन भी अन्दर न आ सके।

मेरी देखभाल के लिये एक आया थी जो मुझे अपना दूध पिलाती थी। उसके अलावा और भी कई दासियाँ और नौकरानियाँ भी मेरे पास थीं जो मेरी दूसरी जरूरतों का ख्याल रखती थीं।

इस तरह से मैं इस शानदार महल में रह कर बड़ा हुआ। मेरे लिये एक पढ़ा लिखा मास्टर रखा गया जो मुझे यह सिखाता था कि जनता से कैसे व्यवहार करना है। उसने मुझे सात तरह की लिखाई के ढंग और हर विज्ञान और कला भी सिखायी।

मेरे पिता हमेशा ही मेरी देखभाल करते थे। मेरे साथ किस समय क्या हो रहा है मेरे पिता को मेरे हर हाल का हर समय पता रहता था।

मुझे लगता था कि बस मेरी भी सारी दुनिया वही थी। मैं अपने खिलौने और फूलों से ही खेलता रहता था। मुझे वहाँ हर तरह के बढ़िया बढ़िया खाने खाने के लिये मिलते थे – जो भी मैं चाहता मुझे वही मिल जाता।

जब मैं 10 साल का हुआ तो मुझे कई तरह की विद्याएँ आ गयी थीं और मैं अब बहुत सारे काम अपने आप कर लेता था।

एक दिन उस गुम्बद के एक रोशनदान से एक अजीब किस्म का फूल प्रगट हुआ। मुझे उसे देखने में रुचि हुई तो मैं उसकी तरफ देखने लगा। जब मैं उसकी तरफ देख रहा था तो मैंने देखा कि वह तो साइज़ में बढ़ रहा है।

मैंने उसको अपने हाथ में पकड़ना चाहा। मैंने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया तो वह ऊपर की तरफ उठ गया। यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ सो मैं उसी पर नजर जमाये रहा कि मुझे कहीं से हँसने की आवाज सुनायी दी।

आवाज सुन कर मैंने ऊपर देखने के लिये अपना चेहरा ऊपर उठाया तो देखा कि चाँद जैसा चेहरा फ़ैल्ट का कपड़ा फाड़ कर अन्दर आ रहा है।

उसे देखने पर मेरे दिमाग और इन्द्रियों ने काम करना बन्द कर दिया। जब मैं कुछ होश में आया तो मैंने फिर ऊपर देखा तो देखा कि कुछ परियाँ अपनेे कन्धों पर जवाहरातों से जड़े हुए एक सिंहासन को ला रही थीं।

उस सिंहासन पर एक स्त्री बैठी हुई थी जिसके सिर पर जवाहरात जड़ा एक ताज रखा था। वह बहुत बढ़िया कपड़े पहने हुई थी। उसके एक हाथ में लाल का एक गिलास था जिसमें से वह शराब पी रही थी।

सिंहासन बहुत धीरे धीरे उतर रहा था। उतर कर वह नीचे जमीन पर बैठ गया। तब परी ने मुझे बुलाया और अपने पास अपने सिंहासन पर बिठाया। फिर उसने मुझसे प्यार दिखाते हुए मेरे होठों को चूमा। उसने मुझे गुलाबी शराब का एक गिलास पिलाया।

वह बोली — “यह आदमी की जात बहुत बेवफा है पर मेरा दिल तुझे प्यार करता है। ”

जो कुछ भी वह कह रही थी वह सब इतना प्यारा और इतना अच्छा लग रहा था कि मुझे लग रहा था जैसे दुनिया भर का आन्न्द मुझे मिल गया हो। और इस तरह मुझे लगा जैसे मैं पहली बार आनन्द की दुनिया में घुसा था।

उसका नतीजा मेरी यह आज की हालत है पर दुनिया में किसी ने ऐसा नशीला आनन्द न ही कहीं सुना होगा या न कहीं देखा होगा। उस उत्साह में हमारे दिल बिल्कुल शान्त थे हम दोनों बैठे हुए थे कि अचानक हमारा आनन्द टूट कर चूर चूर हो गया।

अब तुम उन हालात को सुनो जिसमें ऐसा हुआ। चार परियाँ आसमान से नीचे उतरीं और उन्होंने मेरी प्यारी के कान में फुसफुसा कर कुछ कहा जिसको सुन कर उसके चेहरे का रंग बदल गया।

उसने मुझसे कहा — “ओ मेरे प्यारे। मुझे तुम्हारे साथ कुछ पल बिताने में बहुत अच्छा लग रहा था। इससे मेरा दिल बहुत खुश हो रहा था। मैं इसी तरह से तुम्हारे पास बार बार आती या फिर तुम्हें अपने साथ ले जाती।

पर हमारी किस्मत हम दोनों को इस तरह से शान्ति और खुशी से एक साथ रहने की इजाज़त नहीं देती। इसलिये विदा मेरे प्यारे। अल्लाह तुम्हारी रक्षा करे। ”

ये शब्द सुन कर मेरी इन्द्रियों ने तो फिर से काम करना बन्द कर दिया और मेरे हाथों के तोते उड़ गये।

मैं चिल्लाया — “ओ मेरे ऊपर जादू डालने वाली। हम दोबारा कब मिलेंगे इतने भयानक शब्द तुमने मुझसे कैसे कह दिये। अगर तुम जल्दी ही लौटोगी तभी तुम मुझे ज़िन्दा पाओगी नहीं तो तुम्हें देर से आने का अफसोस रहेगा। नहीं तो मुझे अपना नाम और पता बता कर जाओ ताकि उसके सहारे मैं तुमको ढूँढ सकूँ और तुम्हारे पास पहुँच सकूँ। ”

यह सुन कर वह बोली — “अल्लाह करे कि शैतान इस बात को न सुने और तुम्हारी उम्र 120 साल की हो। अगर हम ज़िन्दा रहे तो फिर मिलेंगे। मैं जिन्न के राजा की बेटी हूँ और काफ़ पहाड़[19] पर रहती हूँ। ”

यह कह कर उसने अपना सिंहासन ऊपर की तरफ उड़ा दिया। वह उसी ढंग से ऊपर उड़ गया जैसे वह नीचे आया था।

जब तक सिंहासन दिखायी देता रहा तब तक हम दोनों की आँखें एक दूसरे को देखती रहीं। जब वह मेरी आँखों से वह दूर चला गया तो मेरी हालत ऐसी हो गयी जैसे उस परी की छाया मेरे ऊपर पड़ गयी हो।

एक अजीब सी उदासी मेरे दिल पर छा गयी। मेरी सोच समझ दोनों ने मेरा साथ छोड़ दिया। मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। अब मेरा मन नहीं लगता था और मेरी समझ में नहीं आता था कि मैं क्या करूँ।

मैं बहुत ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। मेरा खाने पीने में मन नहीं लगता था। मैं अच्छे बुरे की चिन्ता भी नहीं करता था।

यह प्यार क्या क्या बुरे काम नहीं करवाता

दिल टूट जाता है और मन बेचैन हो जाता है

मेरी इस बदकिस्मती का पता मेरी आया और मास्टर को लग गया था। डर के मारे काँपते हुए वे राजा के पास गये और उनसे कहा कि दुनिया के लोगों के राजकुमार की ऐसी ऐसी हालत है।

हमें नहीं पता कि कि यह घटना कैसे हो गयी। यह आफत उसके ऊपर अचानक कैसे टूट पड़ी। उसको न भूख लगती है न प्यास। न उसको नींद आती है और न आराम। ”

यह दुख भरी खबर सुन कर राजा तुरन्त ही बागीचे में आये जिसमें मैं रहता था। उनके साथ वजीर अक्लमन्द लोग कुलीन लोग ज्योतिषी डाक्टर अक्लमन्द मुल्ला भक्त लोग संत लोग आये थे। मेरी ऐसी रोती हुई हालत देख कर वह खुद भी रो पड़े और रो कर अपनी छाती से लगा लिया। उन्होंने तुरन्त ही मेरे इलाज का हुकुम दिया।

डाक्टरों ने मेरे दिल को मजबूत करने के लिये और दिमाग को ठीक करने के लिये अपने अपने नुस्खे लिखे। पवित्र मुल्लाओं ने अपनी अपनी जादू की चीज़ें बतायीं। कुछ और लोगों ने झाड़ फूँक वाली प्रार्थनाएँ पढ़ीं। कुछ ने मेरे लिये गंडे ताबीज़ बनाये – कुछ निगलने के लिये कुछ शरीर पर पहनने के लिये।

यह सब करके उन्होंने मेरे ऊपर फूँक मारनी शुरू की। ज्योतिषियों ने कहा कि “इसकी यह हालत कुछ तारों की जगह इधर उधर हो जाने की वजह से हुई है। उनकी शान्ति के लिये कुछ दान दो।

हर एक ने अपने अपने ज्ञान के अनुसार सलाह दी पर मेरे अन्दर क्या चल रहा था यह तो बस मैं ही जानता था। किसी दूसरे की सहायता या दवा मेरी बदकिस्मती का कुछ नहीं कर सकती थी।

मेरा पागलपन रोज ब रोज बढ़ता जा रहा था। मेरा शरीर बिना खाने के बहुत ही कमजोर होता जा रहा था। मैं दिन रात बस चीखता रहता और आहें भरता रहता।

इसी हालत में तीन साल गुजर गये। चौथे साल में एक सौदागर जो घूमता रहता था राजा के पास आया और देश विदेश से कुछ बहुत मुश्किल से मिलने वाली चीज़ें ले कर आया। उसका बड़ी शान से स्वागत किया गया।

राजा ने उसके ऊपर बहुत मेहरबानियाँ दिखायीं। उसकी तन्दुरुस्ती के बारे में पूछने के बाद राजा ने उससे पूछा — “तुमने बहुत सारे देश घूमे हैं क्या तुमने कहीं कोई बहुत बढ़िया चतुर डाक्टर देखा है या फिर उसके बारे में कहीं सुना है?”

सौदागर बोला — “ओ ताकतवर राजा। आप ठीक कहते है मैं कई देशों में घूमा हूँ। हिन्दुस्तान में गंगा नदी के बीच में एक छोटा सा पहाड़ है उस पर एक जटाधारी गोसाँई[20] रहता है। वहाँ उसने महादेव का एक बड़ा सा मन्दिर बनाया है। उसके साथ ही पूजा करने की एक बहुत बड़ी जगह भी है और एक बहुत सुन्दर बागीचा भी है।

उसी पहाड़ी टापू पर वह रहता है और उसका तरीका यह है कि हर साल शिवरात्रि् के दिन वह अपने रहने की जगह से बाहर निकल कर आता है नदी में तैरता है।

नहाने के बाद जब वह अपने रहने की जगह लौट रहा होता है तो कई देशों के बीमार और दुखी लोग चाहे वे पास के हों या दूर के उसके दरवाजे के पास इकठ्ठा रहते हैं। यह एक बहुत बड़ी भीड़ होती है।

वह संत गोसाँई जिसे आजकल का प्लैटो[21] भी कहा जा सकता है सबका पेशाब देखता है और नब्ज़ देखता है और उसके अनुसार दवा देता है। अल्लाह ने उसे इलाज की ऐसी ताकत दी है कि उसकी दवाएँ लेने पर बीमारी बिल्कुल ठीक हो जाती है और बीमार बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।

यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा है और अल्लाह की ताकत को जाना और माना है कि अल्लाह ने कैसे कैसे आदमी पैदा किये हैं। अगर योर मैजेस्टी मुझे हुकुम दें तो मैं दुनिया के लोगों के राजकुमार को वहाँ ले जा सकता हूँ और उन्हें वहाँ दिखा सकता हूँ। मुझे पूरा भरोसा है कि राजकुमार बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगे।

इसके अलावा यह इलाज इसलिये भी बहुत फायदेमन्द है कि क्योंकि बजाय इस कमरे की बन्द हवा में साँस लेने के दूसरी जगहों की हवा में साँस लेने से और वहाँ का खाना खाने से जहाँ जहाँ से भी हम गुजरेंगे राजकुमार का दिमाग खुशी से भरेगा। ”

राजा को सौदागर की सलाह बहुत ठीक लगी। वह यह सुन कर बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा — “शायद सौदागर के कहे अनुसार यह इलाज अपना असर करेगा और मेरे बेटे के दिमाग के ऊपर जो यह बोझा है वह हट जाये। ”

राजा ने अपने भरोसे का एक कुलीन आदमी जिसने दुनिया देखी थी और जिसकी सलाह को उसने कई मौकों पर जाँचा भी था और उस सौदागर को मेरी देखभाल का जिम्मा दे दिया। इन्होंने मेेरे लिये सारा सामान जो मुझे जरूरत पड़ सकती थी इकठ्ठा कर दिया।

हमको हमारे सामान के साथ कई तरह की नावों पर सवार करा कर उन्होंने हमें विदा किया। धीरे धीरे हम उस जगह की तरफ बढ़ने लगे जहाँ वह गोसाँई संत रहता था। खाने और हवा पानी के बदलाव से मेरा दिमाग कुछ बदला कुछ शान्त हुआ।

पर मेरी शान्त रहने की आदत अभी भी बनी हुई थी। मैं अक्सर रोता रहता था। उस सुन्दर परी की याद मेरे दिमाग से एक पल को भी नहीं हटी थी। अगर मैं कुछ बोलता तो बस यही लाइनें दोहराता —

मुझे नहीं मालूम कि कौन सी परी ने मुझे देखा

पर उससे पहले मेरा दिल मजबूत था शान्त था

आखिर 2–3 महीने गुजर गये। करीब करीब चार हजार बीमार और दुखी लोग उस पहाड़ पर आये हुए थे। सब लोग यही कह रहे थे कि अगर अल्लाह ने चाहा तो गोसाँई संत जल्दी ही अपने घर में से बाहर आयेगा और हमें अपनी सलाह देगा और हम बिल्कुल ठीक हो जायेंगे।

थोड़े में कहो तो वह दिन आ गया जिस दिन वह लोगों का इलाज करता था। सुबह सुबह गोसाँई संत अपने घर में से बाहर निकला।

वह गंगा में नहाया तैरा और फिर अपने घर वापस लौटा। फिर उसने गाय के गोबर की राख अपने शरीर पर मली अपने माथे पर चन्दन का टीका लगाया अपनी लँगोटी[22] बाँधी एक तौलिया अपने कन्धे पर लटकाया अपने बाल बाँधे मूँछों में बल दिये खड़ाऊँ पहनी।

उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसको लिये दुनिया की किसी चीज़ की भी कोई कीमत नहीं थी। उसने लिखने के लिये एक छोटी सी नीची जवाहरात जड़ी मेज अपनी बगल में दबायी और हर बीमार आदमी को देखते हुए और उनको दवा बताते हुए वह मेरे पास आया।

जब हमारी आँखें आपस में मिलीं तो वह मूर्ति की तरह से खड़ा रह गया। वह एक पल रुका और फिर मुझसे अन्दर आने के लिये कहा। मैं उसके साथ अन्दर चला गया।

जब वह सबसे निपट लिया तो वह मुझे बागीचे में ले गया। वहाँ वह मुझे एक साफ सजे हुए कमरे में ले गया और बोला — “आप यहीं ठहरिये। ” और फिर अपने घर चला गया।

जब चालीस दिन निकल गये तो वह मेरे पास आया। उसने मेरी हालत में पहले से सुधार पाया। वह मुस्कुराया और बोला — “आप इस बागीचे में टहल कर इसका आनन्द लें और जो फल आपको अच्छा लगे वह फल खायें। ”

फिर उसने मुझे एक चीनी का बरतन भर कर माजूँ[23] दिया और कहा “इसमें से रोज छह माशा[24] सुबह को कुछ खाने से पहले खायें। ”

मैंने उसकी बात मानी। मेरे शरीर में रोज ब रोज ताकत आने लगी और मेरा दिमाग भी थोड़ा शान्त रहने लगा पर ताकतवर प्यार अभी भी जीत रहा था। वह परी अभी भी मेरी आँखों के सामने चक्कर काटती रहती।

एक दिन मुझे दीवार में बने एक छेद में एक किताब दिखायी दी। मैंने उसे वहाँ से उठाया और देखा कि भविष्य जानने की सारी विद्या उसमें लिखी हुई थी। जैसे सुमद्र किसी कटोरे में समा गया हो। मैं उस किताब को रोज पढ़ने लगा। मैंने उस विद्या में काफी जानकारी हासिल कर ली थी। मुझे जादू की ताकत वाले काढ़ों का भी पता चल गया।

इस तरह से एक साल निकल गया और वही खुशी का दिन फिर आ गया जिस दिन फिर से बहुत सारे लोगों को ठीक होना था। गोसाँई फिर से अपने पूजा की मुद्रा से उठा और अपने घर से बाहर निकला।

मैंने उसको सलाम किया। उसने मुझे अपना लिखने का सामान दिया और कहा — “आओ मेरे साथ आओ। ” सो मैं उसके साथ चल दिया। जब वह फाटक से बाहर निकला तो एक बहुत बड़ी भीड़ ने उसका स्वागत किया।

मुझे उसके साथ देख कर कुलीन आदमी और सौदागर उसके पैरों पर गिर पड़े और उसको बहुत दुआएँ देने लगे। उन्होंने कहा — “आप ही की मेहरबानी से कम से कम इनको इतना फायदा तो हुआ है। ”

गोसाँई जी नहाने के लिये घाट[25] की तरफ गये और जैसा कि उनका तरीका था उन्होंने उसमें नहाया पूजा की और अपने घर लौटे। लौटते समय उन्होंने सब रोगियों को देखा।

अब ऐसा हुआ कि पागलों के साथ एक बहुत ही सुन्दर नौजवान खड़ा हुआ था जिससे खड़ा भी नहीं जा रहा था। उसने गोसाँई का ध्यान खींच लिया। गोसाँई ने मुझसे कहा — “इसको अपने साथ ले कर आओ। ”

बाकी सबको दवाओं के नुस्खे दे कर वह अपने प्राइवेट कमरे में गया। वहाँ उसने उस पागल नौजवान की खोपड़ी थोड़ी सी खोली और अपनी सँड़ासी से एक सैन्टीपैड पकड़ने की कोशिश की जो उसकी खोपड़ी में चल रहा था।

यह देख कर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैं बोला — “अगर आप इस सँड़ासी को थोड़ा सा आग में गरम कर लेंगे और फिर उससे सैन्टीपैड को पकड़ेंगे तो उसे ज़्यादा अच्छी तरह से पकड़ पायेंगे। क्योंकि फिर वह अपने आप ही आपकी सँड़ासी की तरफ खिंचा चला आयेगा। पर अगर आप इस तरह से उसको निकालने की कोशिश करेंगे तो वह खोपड़ी पर से अपनी पकड़ नहीं छोड़ेगा और मरीज की ज़िन्दगी को खतरा रहेगा। ”

यह सुन कर गोसाँई आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगा। वह चुपचाप उठा और बिना एक शब्द बोले बाहर बागीचे के एक कोने की तरफ चला गया। वहाँ से उसने एक पेड़ पकड़ा और अपने एक लम्बे बाल का फन्दा बनाया और उसको अपने गले में डाल कर उस पेड़ से लटक गया।

मैं उसके पीछे पीछे गया भी पर जब तक मैं पहुँचा तब तक तो अफसोस वह मर गया था। मैं इस अजीब से दृश्य को देख कर बहुत दुखी हुआ। पर अब तो मैं मजबूर था। मैंने उसी हालत में उसको दफन करने का सोचा।

जैसे ही मैंने उसके शरीर को पेड़ से नीचे उतारने की कोशिश की तो उसके बालों से दो चाभियाँ नीचे गिर पड़ीं। मैंने उन दोनों चाभियों को उठा लिया और उस खजाने यानी गोसाँई के शरीर को मिट्टी में दबा दिया।

मैंने वे दोनों चाभियाँ उदायीं और उनको उसके घर में हर जगह लगा कर देखा। इत्तफाक से उन दोनों चाभियों से मैं दो कमरे खोल सका। मैंने देखा कि वे दोनों कमरे फर्श से ले कर छत तक जवाहरातों से भरे पड़े हैं।

एक जगह एक कमरे में एक आलमारी रखी हुई थी जो मखमल से ढकी हुई थी और उसका ताला सोने का था। मैंने उसको खोला तो मैंने देखा कि उसमें तो एक किताब रखी हुई थी उसमें बहुत अजीब अजीब से नाम लिखे हुए थे। [26]

उसमें जिनी को बुलाने का परियों को बुलाने का आत्माओं से बात करने का और उनको किस तरह काबू में किया जाये इन सबका तरीका भी लिखा हुआ था। यहाँ तक कि सूरज का ताबीज बनाने का भी।

वह खजाना देख कर मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने वे सब जादू करके देखने शुरू कर दिये। मैंने बागीचे का दरवाजा खोला और अपने साथ आये कुलीन आदमी से और जो मेरे साथ आये थे उन सबसे कहा कि वे उन सब नावों को बुलवायें जो हमें ले कर आयी थीं। अब हम वापस जायेंगे।

वे सब नावें मैंने जवाहरात मसाले व्यापार करने के लिये सामान किताबें आदि से भरवायीं मैं एक छोटी नाव में चढ़ा और हम वहाँ से चल दिये।

चलते चलते जब हम अपने देश के पास पहुँचे तो यह खबर मेरे पिता के पास पहुँची तो वह अपने घोड़े पर सवार हुए और हमसे मिलने के लिये आये। बहुत प्यार से उन्होंने मुझे अपने गले लगाया। मैंने उनके पैर चूमे और कहा — “मेहरबानी करके मुझे अपने पुराने वाले बागीचे में रहने की इजाज़त दी जाये। ”

राजा बोले — “बेटे वह बागीचा तो मुझे कुछ शुभ नहीं लगता इसलिये मैंने उसको रखने से भी सोचना छोड़ दिया। वह जगह तो अब लोगों के रहने के लिये भी ठीक नहीं है। तुम किसी और जगह जा कर रहो जहाँ तुम्हारी इच्छा करे।

अच्छा हो अगर तुम कोई जगह किले में ही चुन लो और मेरी आँखों के सामने ही रहो। हम उसी में तुम्हारे लिये वैसा ही बागीचा बनवा देंगे जैसा तुम चाहोगे। तुम वहाँ उसमें अपनी इच्छा अनुसार घूम सकोगे और मन बहला सकोगे। ”

मैंने किसी और जगह रहने के लिये काफी ज़ोर दे कर मना किया और जबरदस्ती उसी बागीचे को फिर से ठीक कराने के लिये कहा। उसको स्वर्ग बनाने के बाद मैं उसमें रहने चला गया।

जब मैं आराम से उस महल में रहने लगा तब जब मुझे सुविधा हुई तब मैंने जिन्न को वश में करने के लिये 40 दिन का उपवास रखा। मैने अपने ये काम ज़िन्दा आदमियों के ऊपर करने छोड़ दिये और इनको जिन्नों की दुनिया तक सीमित कर लिया।

चालीस दिन पूरे हो जाने के बाद एक रात इतना भारी तूफान आया जिसमें मजबूत से मजबूत इमारतें गिर गयीं। पेड़ जड़ से उखड़ कर चारों तरफ गिर गये और परियों की एक सेना प्रगट हुई।

ऊपर से एक सिंहासन उतरा जिस पर एक शानदार आदमी बैठा हुआ था। उसने बहुत कीमती कपड़े पहने हुए थे। उसके सिर पर मोतियों का ताज था। उसको देख कर मैंने उसे बड़ी इज़्ज़त के साथ सलाम किया।

उसने मेरे सलाम का जवाब देते हुए कहा — “दोस्त तूने बेकार में ही हमें यहाँ क्यों बुलाया है। तुझे मुझसे क्या चाहिये। ”

मैं बोला — “यह अभागा बहुत दिनों से आपकी बेटी के प्रेम में पड़ा है। और उसके लिये यह अभागा कहाँ कहाँ नहीं घूमा है। मैं देखने में ज़िन्दा दिखायी देता हूँ पर मैं मरे हुए से ज़्यादा नहीं हूँ। मैं अपनी ज़िन्दगी से थक गया हूँ इसलिये मैंने अपनी ज़िन्दगी इस काम को करने पर जुए पर लगा दी है जो मैंने अभी अभी किया है।

अब मेरी सारी उम्मीदें केवल आपकी मेहरबानी पर ही हैं कि आप इस अभागे घूमने वाले को उबार लेंगे और मेरी ज़िन्दगी मुझे दे देंगे यानी आप आप मुझे अपनी बेटी दे देंगे। यह काम आपके लिये एक बहुत ही पुन्य का काम होगा। ”

मेरी इच्छा सुन कर उसने कहा — “आदमी मिट्टी का बना होता है और हम लोग आग से बने हुए होते हैं। इस तरह की दो चीज़ों में आपस में सम्बन्ध होना बहुत मुश्किल है। ”

मैंने कसम खा कर कहा कि मैं उसको केवल देखना चाहता हूँ। और मेरा उससे कोई मतलब नहीं है। परियों का राजा फिर बोला — “आदमी के वायदे का कोई मतलब नहीं होता। वह अपना वायदा नहीं निभाता। जब उसको जरूरत होती है तब वह वायदे कर तो लेता है पर निभाते समय वह उनको याद नहीं रखता।

इसलिये मैं तेरी ही भलाई के लिये कहता हूँ कि कभी तू अगर कोई और इच्छा करे तो वह और तू दोनों मर जायें और जो कुछ हुआ है वह सब बेकार हो जाये। इसके अलावा तेरी ज़िन्दगी भी खतरे में पड़ जाये। ”

यह सब सुनने के बाद भी मैंने अपनी कसमें दोहरायी और कहा जो कुछ भी हम दोनों की ज़िन्दगी को नुकसान पहुँचायेगा मैं वह काम कभी नहीं करूँगा। मैंने बस उससे यही इच्छा प्रगट की कि मैं उसको कभी कभी देखना चाहता था।

जब हम लोग ये बातें कर रहे थे तो अचानक ही वह परी जिसके बारे में हम बातें कर रहे थे वहाँ अपनी पूरी शान के साथ सजी हुई प्रगट हो गयी। और राजा का सिंहासन वहाँ से ऊपर उठ कर चला गया।

मैंने उत्सुकता से परी को गले लगा लिया और कहा —

तुम ओ कमान जैसी भौंहों वाली क्यों मेरे घर नहीं आतीं

जिसके लिये मैंने 40 दिन का उपवास किया है

हम दोनों इस खुशी के साथ बागीचे में रहे। मैं तो डर के मारे किसी दूसरी खुशी के बारे में सोच भी नहीं सका। मैं तो अभी तक केवल उसके होठ ही चूम सका था पर मैं हमेशा उसकी सुन्दरता की तरफ देखता रहता।

वह प्यारी सी परी यह देखते हुए कि मैं अपनी कसम का कितना पक्का हूँ अन्दर ही अन्दर बहुत आश्चर्य करती।

वह कभी कभी कहती — “प्रिय। तुम तो वाकई अपने कसम के बड़े पक्के हो। पर मैं तुम्हें अपनी दोस्ती के नाम पर तुमको एक सलाह देती हूँ। तुम अपनी जादू वाली किताब की ठीक से देखभाल करना क्योंकि जैसे ही कभी तुम्हारा ध्यान भटका तो जिन्न लोग तुम्हारी उस किताब को चुरा लेंगे। ”

मैं बोला — “मैं उसको अपनी जान से भी ज़्यादा सँभाल कर रखूँगा। ”

और बस फिर एक दिन क्या हुआ कि एक रात को शैतान ने मुझे भटका दिया। काबू करने के शौक में मैंने अपने मन में कहा — “जो होता है होता रहे। मैं कब तक अपने आपको काबू में रखूँ। ”

सो मैंने उस प्यारी सी परी को अपने गले से लगा लिया और उसके साथ कुछ पल आनन्द से बिताने की कोशिश की। कि तभी एक आवाज आयी — “मुझे वह किताब दो क्योंकि उसमें अल्लाह के नाम लिखे हुए हैं। उसका अपमान न करो। ”

उस समय मैं अपनी भावनाओं में कुछ इस तरह बह रहा था कि मैंने अपने सीने से लगी हुई उस किताब को दे दिया। उस समय मुझे यह भी पता नहीं चला कि वह किताब मैंने किसको दी। और अपने प्यार के सागर में डूब गया।

मेरा यह बेवकूफी भरा व्यवहार देख कर वह सुन्दर परी बोली — अफसोस ओ स्वार्थी आदमी। तूने आज अपनी सीमा पार कर दी और मेरी चेतावनी भी नहीं सुनी। ”

यह कह कर वह बेहोश हो गयी और मैंने एक जिन्न को उसके सिर के पास खड़ा देखा जिसने अपने हाथों में वह किताब पकड़ रखी थी। मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की और उसको पीटा भी उस किताब को उससे छीनने की भी बहुत कोशिश की पर इस बीच एक और जिन्न वहाँ प्रगट हो गया और उसके हाथ से किताब छीन कर वहाँ से भाग गया।

मैंने वे लाइनें बोलीं जो मैंने याद करके रखी थीं। सो वह जिन्न जो अभी भी मेरे पास खड़ा था एक बैल में बदल गया। पर अफसोस प्यारी परी को होश नहीं आ सका। और उसकी यह बेहोशी की हालत चलती ही रही।

इससे मेरा दिमाग कुछ बदल गया। मेरी सारी खुशियाँ कड़वाहट में बदल गयीं। उस दिन से मुझे आदमी से कुछ नफरत सी हो गयी। मैं इस बागीचे के एक कोने में रहने लगा। मैंने पन्ने का यह फूलदान बनाया इसमें ये फूल सजाये।

मैं हर महीने इस आशा में उसी बैल पर सवार हो कर मैदान जाता हूँ यह फूलदान तोड़ता हूँ एक दास को मारता हूँ ताकि मैं अपने दिमाग को कुछ शान्ति दे सकूँ।

मैं चाहता हूँ कि मेरी यह दुखी ज़िन्दगी वहाँ के सब लोग देखें कि शायद वहाँ कोई आदमी मेरे ऊपर रहम खा कर मेरे लिये प्रार्थना कर दे कि मैं अपने दिल की इच्छा को फिर से पा सकूँ।

ओ मेरे दोस्त यही मेरी कहानी है जो मैंने तुम्हें सुनायी – मेरे पागलपन की दुख भरी कहानी। ”

मैं उसकी कहानी सुन कर रो पड़ा। कुछ सँभलने पर बोला — “ओ राजकुमार तुमने तो सचमुच में बहुत कुछ सहा है। पर मैं अल्लाह की कसम खा कर कहता हूँ कि मैं अपनी इच्छाओं को छोड़ दूँगा और अब मैं जंगलों और पहाड़ों में तुम्हारे काम के लिये घूमूँगा और तुम्हारी परी को पाने के लिये जो कुछ भी मुझसे हो सकेगा वह करूँगा। ”

राजकुमार से यह वायदा करके मैं वहाँ से चल दिया और पाँच साल तक रेगिस्तान में उसकी रेत छानते हुए एक पागल की तरह से घूमता रहा पर मुझे उसकी परी का कहीं पता नहीं चला।

आखिर सफलता न मिलने से निराश हो कर मैं अपने आपको खत्म करने के इरादे से जिससे मेरी कोई हड्डी पसली साबुत न बचे एक पहाड़ पर चढ़ गया और अपने आपको नीचे गिराने वाला ही था कि , , ,

वही परदे वाला घुड़सवार वहाँ आया जिसने तुम्हें मरने से बचाया था और मुझसे बोला — “तुम यहाँ से कूद कर अपनी जान मत दो। कुछ ही दिनों में तुम्हारे दिल की इच्छाएँ पूरी होने वाली हैं। ”

सो ओ पवित्र दरवेश। अब मैंने तुम्हें पा लिया है। अब मुझे पूरी आशा है कि हँसी खुशी अब हमारी किस्मत में होगी। और हम सब लोग जैसे अब दुखी हैं अब अपनी इच्छाएँ पूरी होते देख सुखी हो सकेंगे।

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