लोककथा भाग 2
टिपटिपवा
एक गाँव में मेघु नाम का एक मोची ने अपने रहने के लिए एक झोपड़ी बना रखी थी। वह अपने परिवार का गुजर-बसर करने के लिए प्रतिदिन जंगल में जाता और वहाँ से मरे हुए जानवरों का चमड़ा एकत्रित करके लाता। उन चमड़ों से वह जूता बनाता और बाजार में बेच आता। यही उसकी प्रतिदिन की दिनचर्या थी और जीवन यापन का साधन।
एक दिन जब वह जंगल में चमड़ा लेने गया था तभी वहाँ एक बाघ आ गया। बाघ को अपनी ओर आता देख वह डर गया और बाघ से बचने का उपाय सोचने लगा। उसने भागना ठीक नहीं लगा क्योंकि अगर वह भागता तो बाघ से तेज़ कैसे भाग सकता था।बाघ तो उसे दौड़ाकर पकड़ लेता। उसने तेजी से सोचना शुरु कर दिया और वह अपने उंगलियों से जमीन नापने लगा।
बाघ जब उसके पास आ गया तो उसकी हरकत को अचंभित होकर देखता रहा फिर थोड़ी देर बाद बाघ ने मेघु से पूछा, “यह क्या कर रहे हो?” इसपर मेघु ने कहा, “ऐ, मेरे दाता! आपकी कृपा से ही हमारा भरण पोषण हो रहा है। शिकार को मारकर उसे खाने के बाद जो आप चमड़ा छोड़ देते हो उसी चमड़े का मैं जूता बनाकर बाजार में बेच कर कुछ पैसे कमा लेता हूँ। मैं तो आपके भी पैरों का निशान नाप रहा था ताकि आप के लिए भी जूते बना दूँ।” मेघु की बात सुनकर बाघ खुश हो गया और आगे बढ़कर अपने पैर की नाप देने लगा। बनावटी नाप लेने के बाद मेघु अपनी जान बचाकर घर भाग गया।
मेघु घर आकर सारी बात अपनी पत्नी को बताया। उसकी पत्नी ने कहा कि चलिए, जान तो बच गई पर अगर बाघ अपना जूता लेने यहाँ आ गया तो क्या करोगे? मेघु ने कहा कि जब बाघ यहाँ आएगा तो देख लूँगा।
एक दिन की बात है कि सुबह से ही हल्की टीप टीपी बारिश हो रही थी। रात होने को आ गई। मेघू खाट पर पड़ा, सोच रहा था कि अगर एसे ही दिन रहेगा तो काम का जुगाड़ कैसे होगा? अभी वह यही सब सोच रहा था तभी वह बाघ उसके घर के पिछवाड़े आकर एक पेड़ केे पीछे छिप गया।
मेघु की बीबी ने कहा कि लगता है घर के पिछवाड़े बाघ है। इसपर मेघु ने कहा , ” चुप रहो! कम डर बाघ का अधिक डर टिपटिपवा का “चुप रहईं! थोरका डर बघवा के ढेर डर टिपटिपवा के । ” मेघु की बात सुनकर बाघ सोचने लगा कि यह टिपटिपवा कौन है जिससे यह इतना डर रहा है।
उधर गाँव के ही एक धोबी का गदहा कहीं खो गया और वह उस गदहे को खोजते हुए मेघू के घर के पास आ गया और दरवाजे पर से ही मेघु को बुलाया, “मेघु भाई! मेरे गदहे को कहीं आप ने देखा है?” इस पर मेघू ने कहा कि लगता है कि वह मेरे घर के पीछे छिपा है। उस धोबी ने आव देखा न ताव और चुपके से जाकर बाघ का कान पकड़कर उसकी पीठ पर बैठ गया और डंडे से मारने लगा। बाघ को कुछ समझ नहीं आया उसने सोचा कि कहीं ये ही तो टिपटिपवा नहीं। बाघ अपनी जान बचाकर जंगल की ओर भागा। अभी वह जंगल में पहुँचा ही था तभी बिजली चमकी। बिजली के चमकते ही प्रकाश हो गया और उस प्रकाश में धोबी ने देख लिया कि यह गदहा नहीं बाघ है। अब धोबी की सीट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह जल्दी से बाघ की पीठ पर से कूदकर वहीं एक पेड़ की खोडर में जाकर छिप गया। यह सब एक लोमड़ी देख रही थी। उसने भागते हुए बाघ को रोका और पूछा, “मामा, मामा! क्यों भाग रहो हो?” बाघ बोला, “तुम भी भागो। पीछे टिपटिपवा पड़ गया है।” इसपर लोमड़ी ने कहा कि वह कोई टिपटिपवा-उपटिपवा नहीं है। चलिए मैं आपको दिखाती हूँ।जब लोमड़ी बाघ के साथ पेड़ के पास पहुँची तो जिस खोडर में धोबी छिपा हुआ था उसी में अपनी पूँछ डालकर लगी हिलाने। वह सोच रही थी कि छिपे हुए आदमी का दम घुटने लगेगा और वह बाहर आ जाएगा। पर हुआ ठीक इसके उलटा। धोबी ने अपने दाँतों से कच से लोमड़ी की पूँछ काट ली। लोमड़ी चिल्लाई,”भागिए मामा, भागिए। यह टिपटिपवा नहीं पूँछकटवा है (भागा मामा, भागा, इ टिपटिपवा नाहीं पोंछिकटवा बा)।”इसके बाद लोमड़ी और बाघ जंगल में भाग गए और धोबी अपने घर चला आया। इसके बाद कभी फिर बाघ गाँव की ओर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।