लोककथा भाग 20

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बहुत समय पहले की बात है | एक गाँव में दो भाई रहते थे | एक का नाम था धनपाल और दुसरे का नाम था सरजू | एक बार सरजू नौकरी की खोज में निकला | घूमते घूमते वह एक शहर में जा पहुचा | वहां उसकी मुलाकात एक सेठ से हुयी | सेठ को नौकर की आवश्यकता थी | सेठ ने कहा “नौकरी पर तो रख लूँगा , पर मेरी एक शर्त है”
“कैसी शर्त , हुजुर !” सरजू ने पूछा |

“यदि नौकरी छोडकर भागे तो नाक कान कटवाने पड़ेंगे और साल भर का वेतन भी देना होगा ”

सरजू ने उसकी शर्त स्वीकार कर ली | सेठ बहुत चालाक था | वह जान-बुझकर नौकरों से इतना काम लेता था कि वे नौकरी छोड़ देते और साथ में रूपये भी देते |सेठ नौकरो को खाने के लिए केवल एक चावल और एक दाल देता।उनसे बहुत काम लेता।

बेचारा सरजू भी उसके जाल में फ़ंस गया |सरजू भूख और प्यास के कारण सूखकर काटा हो गया। कुछ ही दिन में सेठ ने सरजू की नाक में दम कर दिया | सरजू ने सोचा “नाक कान कटते तो कटे , पर जान तो बच जायेगी “|
सेठ ने उससे नकद रुपया लिया | नाक कान काटे और नौकरी से छुट्टी दे दी |

सरजू लौटकर गाँव पहूचा | उसकी यह हालत देखकर धनपाल बहुत दुखी हुआ | सरजू ने रोते-रोते अपनी आपबीती सुनाई | धनपाल ने कहा “भैय्या ! मै आपके अपमान का बदला लूँगा | साथ ही सेठ को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि आज के बाद किसी के साथ ऐसा नही कर सकेगा ”

धनपाल सेठ  के पास जा पहुचा | सेठ ने अपनी शर्त दोहराई | धनपाल ने कहा “मेरी भी एक शर्त है | यदि आपने मुझे नौकरी से निकाला तो अपनी नाक कान काट कर देंनी होगी | साथ ही दो साल का वेतन भी देना होगा ”

सेठ ने मन में सोचा कि वह भला नौकर को क्यों निकालेगा ? नौकर तो खुद परेसान हो स्वयं ही भाग जाएगा | उसने भी हामी भर दी |

धनपाल चतुर था | उसने सेठ को सताने की पुरी योजना बना ली | अगले दिन उससे कहा गया “जाओ तालाब के पास वाली मिटटी खोद लाओ ”
धनपाल मिटटी का टोकरा भरकर लाया | उसने सेठानी से पूछा “इसे कहा रखु” |

सेठानी किसी काम में व्यस्त थी | वह चिढकर बोली “मेरे सिर पर डाल दे” |
धनपाल ने मिटटी का टोकरा उसके उपर उल्ट दिया | सेठानी मिटटी से लथपथ हो गयी | उसने सेठ से कहा “इसे नौकरी से निकाल दो यह बेवकूफ है ”

सेठ क्या जवाब देता ? यदि सरजू को निकालता तो उसे अपनी नाक कान कटवानी पडती | 

उसने धनपाल से कहा “हल लेकर खेत पर चले जाओ | दोपहर तक पुरे खेत जुताई कर देना | चुल्हा जलाने के लिए लकड़ी और शिकार भी ले आना”
धनपाल हल लेकर खेत में पहुचा और मजे से पेड़ के नीचे सो गया | दोपहर को उसने हल तोडकर लकड़ी बाँध ली | घर पहुचा तो सेठानी ने कहा “सेठ जी ने कहा है कि रोटी तभी खाने को मिलेगी जब उसे बिना आकर खराब किये खाना होगा और दही भी हांडी का ढक्कन हटाये बिना खाना होगा वरना खाना नही मिलेगा ”

उन लोगो ने सोचा कि ऐसी शर्त सुनकर धनपाल भूखा मर जाएगा | पर वह भी कम सयाना न था | उसने रोटियों को बीच में से खाकर गोल घेरे में छोड़ दिया | दही भी हांडी में सुराख करके सारा दही पी गया |

शाम को सेठ ने आकर सारी बात सूनी | अपने हल की हालत देखकर तो उसने सिर पीट लिया |
सेठ समझ गया कि इस बार उसका पाला किसी सयाने और चतुर से पड़ा है |

कुछ दिनों बाद सेठ जी को ससुराल से बुलावा आया | वह ससुराल जाने के लिए तैयार हो गया | धनपाल को उसने अपने साथ ले लिया |
सेठ स्वयं तो घोड़े पर सवार था और धनपाल पैदल चल रहा था | चलते चलते शाम हो गयी | सेठ आराम करने लगा | धनपाल को उसने घोड़े की रखवाली के लिए बिठा दिया | कुछ ही देर में वहां से कुछ व्यापारी निकले | धनपाल ने घोडा उसको बेच दिया और उसकी पुंछ का टुकड़ा काटकर रख लिया |

जब सेठ सोकर उठा तो धनपाल बोला “सेठजी ! घोड़े को चूहे बिल में ले गये | मैंने उसकी दुम पकडकर रखी है | आओ मिलकर खीचते है ”
धनपाल ने दुम को चूहे के बिल में अड़ा रखा था | ज्यो ही सेठ ने दम खींचा | वह धडाम से पीछे जा गिरा | वह जान गया था कि इसमें धनपाल की कोई चाल है | लेकिन वह कुछ नही कर सका | सेठ ने अगले शहर से दूसरा घोडा खरीदा और यात्रा आरम्भ कर दिया | अगली रात वे लोग सराय में रुके | सेठ ने आदेश दिया

“आज रात सोना नही | घोड़े की मालिश करना | यह सफेद घोडा अच्छी नस्ल का है ”
धनपाल रातोरात एक खरगोश खरीद लाया | उसने सेठ का दूसरा घोडा भी बेच दिया | अगली सुबह वह बोला “सेठजी ! घोडा आगे चलने को तैयार है ”

सेठजी ने घोड़े की जगह खरगोश देखकर पूछा “मेरा घोडा कहा गया ?”
“यही तो है..” धनपाल ने कहा |

“पर …यह तो खरगोश है ” सेठ ने नाराज होते हुए कहा |
धनपाल बोला “हुजुर ! सारी रात मालिश करते करते घोडा घिसकर इतना बड़ा रह गया | देखो मैंने कान पर मालिश नही की | कान कितने खूबसूरती से खड़े है “|

फिर सेठ हताश हो गया और सोचा रात में इसे छोड़कर निकल जाएंगे।जब रात हुई तो धनपाल उनके समान के बक्से में छुप गया और सारी मिठाईया खा गया।जब आगे जाने पर भोजन के लिए  सेठ ने बक्सा खोलकर देखा उसमे धनपाल था और वो सारे भोजन चट कर चुका था।अब सेठ को भूख सता रही थी।सेठ ने सोचा कोई नई तरकीब लगानी होगी।उसने धनपाल को अपने ससुराल भेज दिया कि वो जाकर हमारे आने की खबर करदे और सारे भोजन का इंतज़ाम भी करके रखे।धनपाल सेठ के ससुराल निकल पड़ा वहाँ जाकर ससुराल वालों को खबर दे दी।

जब सेठ अपने ससुराल पहुँचा तो किसी ने उसको न पानी पूछा न खाना सब लोग धनपाल की खातिरदारी में लगे हुए थे। सेठ ने धनपाल से कहा “क्या खबर की तुमने?”
धनपाल ने कहा “जो आपने कहा था वही तो बोला की आपका निर्जला व्रत है 5 दिनों का और सेठानी का कहना है ये जबरन भी खाना पानी मांगे तो भी न दिया जाये”सेठ ये सुनकर अपना माथा पीटने लगा।समझ गया कि ये मेरी जान लेकर मानेगा।अब सेठ धनपाल से मुक्ति पाने का उपाय सोचने लगा।इधर उसे भूखे प्यासे ही सोना पड़ा।

उधर धनपाल मस्त खा पीकर सो गया।रात में सेठ को बहुत जोरो की दीर्घशंका लगी।सेठ ने धनपाल को जगाया और बोला चलो मेरे साथ खेतो की तरफ मुझे फारिग होना है।

धनपाल ने पास रखे घड़े की तरफ इशारा करते हुए कहा इसमे फारिग हो लो मैं बाद में इसे ठिकाने लगा दूँगा।अब सेठ ने बहुत मिन्नतें की लेकिन धनपाल ने सेठ को मना लिया।

सेठ उस घड़े में फारिग होकर धनपाल को कहा इसे दूर फेक आ।धनपाल ने जम्हाई लेते हुए कहा अभी रात बहुत है सो जाओ सवेरा होने के पहले मैं इसे ठिकाने लगा दूँगा।थोड़ी देर बाद जब सुबह होने लगी सेठ ने धनपाल को उठाया और बोला देख सुबह होने को है अब तो इस घड़े को ठिकाने लगा दे।धनपाल बोला अभी बहुत रात है।थोड़ा और सो लो मालिक।

सेठ ने सोचा सुबह होने को है और लोग जगकर ये देखेंगे तो बहुत बदनामी होगी।थोड़ा उजाला हो गया है इसे मैं ही ठिकाने लगा देता हूँ।ये धनपाल तो मुझे मरवा देगा।इसके चक्कर में नहीं फंसता हूँ।

सेठ उठा और कम्बल में खुद को लपेटकर घड़े को उठाया और सर पर रख उसे खेतो की तरफ लेकर जाने लगा।धनपाल इसी ताक में बैठा था।उसने एक लाठी उठाया और चोर चोर चिल्लाने लगा और सेठ के पीछे दौड़ पड़ा।अब चोर चोर का शोर सुनकर सेठ के ससुराल वाले भी उसके पीछे दौड़ने लगें।कुछ गांव वाले भी चोर समझ सेठ का पीछा करने लगें।अब सेठ को कुछ समझ नहीं आ रहा था बदनामी से बचने के लिए वो भी जोर लगाकर भागने लगा।

धनपाल ने आगे बढ़कर उस घड़े पर लाठी से प्रहार कह दिया।घड़ा फुट गया और सेठ जी गन्दगी से ओत प्रोत हो गये।अबतक ससुराल के लोग और गांव वाले सेठ तक पहुँच गये थे उन्होंने दनादन डंडे बरसाने सुरु कर दिए।

सेठ शर्म के मारे कुछ बोल भी नहीं रहा था बस डंडे खाये जा रहा था।धनपाल सब देखकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था।जब ठुकाई पिटाई से गाँव वाले थक गए तो उन्होंने चोर को कम्बल हटाने को कहा सेठ ने डरते डरते कम्बल हटाया उसकी हालत देख गांव वाले ठहाके मारकर हँसने लगें।ससुराल वाले भी खूब जोर जोर हँस रहें थे और सेठ की खिल्ली उड़ा रहें थे।।

सेठ अपना आपा खो बैठा | वह जोर से चिल्लाया “निकल जा यहाँ से तेरी शक्ल नही देखना चाहता ”
“तो ठीक है दो साल का वेतन और अपनी नाक कान कटाकर दीजिये” धनपाल बोला |
सेठ धनपाल की हरकतों से तंग आ चूका था | उसने दो साल का वेतन और अपनी नाक कान के बदले बहुत सारा धन देकर अपनी जान बचाई | उसने वादा किया कि फिर कभी किसी को नही सताएगा |
धनपाल सारा धन लेकर गाँव लौट गया और अपने भाई के साथ रहने लगा |

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