माँ का त्याग
रधिया अपने मुन्ने को लेकर मजदूरी करने जाती थी।कभी पीठ पर बांधकर तो कभी कमर से लटकाकर दिनभर मजदूरी करती और जो कुछ भी उसे मिलता उसमे पेट काटकर मुन्ने के भविष्य के लिए पैसे बचाकर रखती।उसका सपना था मुन्ने को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने का।जिसके लिये वो पाई पाई इकट्ठा कर रही थी।
जब उसका मुन्ना चार साल का हो गया तब उसने पड़ोस में रहने वाले फादर की मदद से उसका एड्मिसन मिशन स्कूल में करवा दिया।
अब उसका मुन्ना भी सज धज कर स्कूल जाने लगा था।रधिया अपने मुन्ने को स्कूल यूनिफॉर्म में देखकर फूली न समाती।अब उसकी आँखों मे मुन्ने के बड़े अफसर बनने के ख्वाब आने लगे थे।वो सपने देखने लगी थी कि उसका मुन्ना बड़ा अफसर बन गया है और सूट बूट पहनकर एक बड़ी सी गाड़ी में आ रहा है।आते ही माँ को गोद मे उठाकर उस गाड़ी में बिठाया और सारा शहर घुमाया।
धीरे धीरे वक़्त बीतता गया ।रधिया की मेहनत रंग लाई।अब मुन्ना एक बड़ा अफसर बन गया था। रधिया खुस हो रही थी कि उसकी मेहनत सफल हुई।एक दिन मुन्ने ने अपने आफिस के लोगो को घर पे पार्टी के लिए बुलाया।जब दोस्तो ने पूछा तुम्हारे बंगले में ये बूढ़ी औरत कौन हैं तो उसने शान से कहा ये मेरी कामवाली बाई है।
यह सुनकर रधिया का दिल टूट गया पर उसने खुद को दिलासा दिया।मुन्ने को उसकी वजह से बेज्जती न झेलनी पड़े इसलिए ऐसा कह दिया होगा।
कुछ दिनों बाद मुन्ने ने अपने ऑफिस के ही महिला मित्र से शादी करली।माँ को भी नहीं बताया ।जब अपनी पत्नी को घर लेकर आया तब रधिया को पता चला।
मुन्ने की पत्नी को रधिया कतई बर्दाश्त नहीं होती थी।मुन्ने से कहकर रधिया को घर से निकलवा दिया।अब रधिया फिर से मजदूरी करती है।पर मुन्ने के लिए खुस है कि उसका घर बस गया।वो बड़ा अफसर बन गया।उसकी तपस्या सफल रही।जिसे उसने एक दिन गटर से उठाकर सीने से लगाया था।