रंगों और खुशियों की
दही भल्ले और गुजियो कि
भागमभाग और हुड़दंगों कि
रंगों में रंगी होती है होली।
सबमे शामिल होकर भी
सबसे गाफिल होकर भी
मुस्कान वाले चेहरे लेकर भी
सबसे घिरे होकर भी
क़यू मौन है इनकी होली।
यूँ लगे कोई तिक्त दवाओं का असर हो।
या कोई गहरा जख्म हरा हो।
सोचा पूछ लूं तोड़ सारे शिष्टता के बंधन।
भर दूँ उनके जीवन मे भी कुछ रंग।
डर जाता हूं उनकी सहमी सी आंखों के सवालों से।
हिम्मत जबाब दे जाती है उनकी खामोशियों पे।
शायद टूट चुका है भरोसा सबसे।
या फिर नहीं उम्मीद कुछ जीवन से।
क्यूं ना एक कोशिस की जाए।
सबके जीवन मे होली के रंग भरी जाए।
#😢😢😢😢#
साल 1950 का यह एक चौंकाने वाला किस्सा रानी बाजार का है। यहां रामप्रकाश रहता…
अपने पूर्व जन्म में कुबेर देव गुणनिधि नाम के गरीब ब्राह्मण थे. बचपन में उन्होंने…
सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं…