लोककथा भाग 19
एक गरीब औरत थी | उसका एक बेटा था | जब वह बड़ा हुआ तो उसने अपनी माँ से कहा...
एक गरीब औरत थी | उसका एक बेटा था | जब वह बड़ा हुआ तो उसने अपनी माँ से कहा...
जबतक मेरी पोस्टिंग पिथौरागढ़ के उस छोटे से चौकी पर थी वहां के कुछ अजीबोगरीब केस और कुछ अजीबोगरीब कहानियों...
एक बाघ जंगल में रखे हुये शिकारी के पिंजरे में फंस गया और निकलने के लिये छटपटाने लगा. बहुत कोशिश...
बहुत समय पहले की बात है | एक गाँव में दो भाई रहते थे | एक का नाम था धनपाल...
एंग्लो इंडियन शिक्षक मिस्टर ऑलिवर एक बार शिमला हिलस्टेशन के बाहर बने अपने स्कूल के लिए देर रात लौट रहे...
बारह बरस के बाद घूरे का भी भाग्य पलटता है। यही कहावत सती मैया के चौरे के विषय में चरितार्थ...
यह गँवार, नीच जाति, चमार की बेटी क्या मन्ने के लिए एक चुल्लू पानी भी नहीं छोड़ेगी? कैसे मीठी छुरी...
पढ़े फ़ारसी बेंचे तेल, देखो जी क़ुदरत का खेल! गाँव के हर आदमी की ज़बान पर यही फ़िक़रा था। जब...
“मेरी समझ में तो समस्या इससे गहरी है। आप उसे जिस रूप में देख रहे हैं, उतनी ही बात होती...
यों तो जिस जेल की यह बात है उसका नाम मैं बता देता, पर मुश्किल यह है कि उसके साथ...
1शेखर उस पहाड़ी से उतरता हुआ चला जा रहा था। उसके क़दम अपनी अभ्यस्त साधारण गति से पड़ रहे थे,...
दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया...
वो चेहरे। कौन-से चेहरे? कौन-सा चेहरा? जो जीवन-भर चेहरों की स्मृतियाँ संग्रह करता आया है, उसके लिए यह बहुत कठिन...
मुझ पर किसी ने कभी दया नहीं की, किन्तु मैं बहुतों पर दया करती आयी हूँ। मेरे लिए कभी कोई...
मैं कोई कहानी नहीं कहता। कहानी कहने का मन भी नहीं होता, और सच पूछो तो मुझे कहानी कहना आता...
ऐसा भी सूर्यास्त कहाँ हुआ होगा... उस पहाड़ की आड़ में से सूर्य का थोड़ा-सा अंश दीख पड़ रहा है,...
1मैं क्यों और कैसे बना?‘बनना’ क्या होता है, मैं जानता हूँ। क्योंकि यवा ने और मैंने मिलकर इस सुन्दर उद्यान...
अंगारे लाल-लाल चमक रहे थे; किन्तु फिर भी छोटी-सी झोंपड़ी में बैठा हुआ व्यक्ति जाड़े से काँप रहा था। रात...
मैं अपनी गृहलक्ष्मी से लड़कर अपने पढ़ने के कमरे में आकर बैठा हुआ था और कुढ़ रहा था।लड़ाई मैंने नहीं...
प्रभाकर जब अपने बड़े कोट के नीचे भरा हुआ 45 बोर का रिवाल्वर लगाकर, जेब में पड़े हुए गोलियों के...
प्यासे खजूर के वृक्षों की छोटी-सी छाया उस कड़ाके की धूप में मानो सिकुड़ कर अपने-आपमें, या पेड़ के पैरों...